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२१३. पत्र : नानाभाई इच्छाराम मशरूवालाको

साबरमती
आषाढ़ बदी ३ [ १९ जुलाई, १९२४]

[१]

भाई नानाभाई,

तुम्हारा पत्र मिला । अनुवाद देख लिया है। तुम्हारे दुःखी होने का कोई भी कारण नहीं है । डरनेका समय वही होता है जब संसार हमें पूजे । जब जगत हमारी निन्दा करता है तब प्रभुके निकट होनेकी सम्भावना होती है । जगत्की स्तुति सुनकर मीराबाई हँसती थी । तुम त्यागपत्र अवश्य दो । सेहतको खराब करके वहाँ रहना तनिक भी वांछनीय नहीं है। लेकिन फिर भी सावधानी के तौरपर जमना-लालजीसे[२] सलाह ले लेना । धर्मकी कसौटी गर्मी-सर्दी, दुःख-सुख और अन्य द्वन्द्वोंको सहन करनेमें ही है ।

मोहनदासके आशीर्वाद

श्री नानाभाई इच्छाराम
अकोला
बरार
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४३१६) से ।
सौजन्य : कनुभाई मशरूवाला

२१४. विदग्ध अथवा अर्धदग्ध

गणपत नामका एक विद्यार्थी अपने परिजनोंको निम्न पत्र[३] लिखकर ७ जुलाई-को अपने घरसे भाग गया है :

इस पत्र में जितना देशप्रेम है उतना ही अज्ञान है । कहाँ डायरशाही और कहाँ एक अंग्रेजका किसी स्त्रीको गाली देना । ऐसे दृश्य देखना शहरोंमें घूमने-फिरनेवालोंकी किस्मत में बदा ही है । केवल गोरे ही भारतीय स्त्रियोंको गालियाँ नहीं देते; भारतीय भी देते हैं और वे तो उन्हें मार तक देते हैं । उद्धत भारतीय स्टेशन मास्टरों और सिपाहियों को बहनोंपर जुल्म करते किसने नहीं देखा ? इस दुष्टताका निवारण कहीं घरसे भाग जानेसे हो सकता है ?

  1. १. डाकखाने की मुहर से ।
  2. २. जमनालाल बजाज ।
  3. ३. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।