किया और वहाँ तपश्चर्या करके आदर्श पुरुष बने। सौभाग्यसे, भागनेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या ज्यादा नहीं है इसलिए मुझे विद्यार्थी गणपतकी चर्चाको विस्तार देनेकी जरूरत नहीं है । लेकिन घरमें रहनेवाले विद्यार्थी गणपतसे बहुत-कुछ बोध ले सकते हैं । हमें दुःखोंको देखकर जड़ अथवा उदासीन नहीं होना चाहिए । हम गणपतकी-सी भावनाका ही विकास करना चाहते हैं । हमें अपनी विद्या कौड़ियोंके भाव नहीं बेचनी है । हम देशके निमित्त ज्ञान अर्जन करें और उसके द्वारा सेवा करें । हम गणपत-जैसी भावनाका विकास करें और उसमें विवेक-बुद्धिका उचित समन्वय करके सन्तुलन रखें। हम सन्तुलन रखना सीखकर धीरज रखना सीखें। हम स्थितिका अध्ययन करके और उपचार ढूँढ़कर उसे दृढ़तासे आजमाएँ । हम बहुत सोच-विचारकर निश्चय करें, लेकिन एक बार निश्चय कर लेनेपर उसका पालन वज्र-जैसी दृढ़ता से करें। गणपत तिरस्कारका पात्र तो अवश्य ही नहीं है । वह दयाका पात्र भी नहीं है । प्रत्युत वह प्रशंसाका पात्र है । उसने केवल उतावलीमें कदम उठाया है । हमें ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए; बल्कि हम जहाँ हैं वहाँ रहते हुए ही हमें अरण्यकी-सी स्थिति उत्पन्न कर लेनी चाहिए । शान्ति और वैराग्य -- आदि गुण मानसिक स्थितियाँ हैं । यह सच है कि कुछ लोगोंको भटकनेसे शान्ति मिलती है । लेकिन बहुत से लोगोंको तो वह जगतके जंजालमें रहते हुए अनुभवसे ही मिल जाती है । हमारा मार्ग तो बहुजन मार्ग है और यही राजमार्ग भी है।
- सहजभावसे तुम यों रहो,
- जैसे-तैसे हरिको लहो ।[१]
यह अखा भगत लिख गये हैं, वे सच्चे ज्ञानी थे ।
नवजीवन, २०-७-१९२४
२१५. प्रश्नोत्तरी
असहयोग के अध्येता एक मित्रने कुछ सवाल पूछे हैं। बहुत से लोगोंके लिए वे उपयोगी हो सकते हैं, इसलिए उनको जवाब सहित यहाँ देता हूँ :
" सिस्टम " का अर्थ
प्र० - हमारा विरोध व्यक्तियोंसे नहीं 'सिस्टम' से है । यहाँ सिस्टमका क्या अर्थ है ? समुदाय, पद्धति या संस्कृति ?
समुदाय हरगिज नहीं । पद्धति जरूर है और जहाँतक संस्कृति उसके लिए जिम्मेदार हो वहाँतक संस्कृति भी ।
- ↑ १. सुतर आवे तेम तू रहे । जेम तेम करीने हरिने लहे ।