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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शिक्षा-पद्धति में बुराई न देखनेवाले आदमीको भी उसका बहिष्कार करना चाहिए । सरकारी अस्पतालकी दवा कितनी ही अच्छी हो और पुलिसका प्रबन्ध कितना ही सराहनीय हो फिर भी असहयोगियोंको उनसे लाभ न उठाना चाहिए।

जिन लोगोंने अदालतों और पाठशालाओंमें इतना ही दोष देखा है कि वे गैरों-की हैं, उनके लिए असहयोग कठिन है । इस बुराईकी जड़ यह नहीं है कि ये संस्थाएँ पराई हैं, बल्कि यह है कि ये एक दूषित पद्धतिकी अंग हैं । इस जगह पद्धतिकी व्याख्याकी जरूरत है; क्योंकि प्रश्नकर्त्ताने “शिक्षा-पद्धति" शब्दोंका प्रयोग किया है । मुझे सरकारकी शिक्षा-पद्धति में भी दोष दिखाई देता है । परन्तु मेरा विरोध उसके कारण नहीं है । मेरा विरोध शासन पद्धतिसे है -- उस पद्धतिसे है जिसमें राज्यकर्त्ताका आर्थिक स्वार्थ प्रधान रहता है और इस कारण जिसमें धर्म या नीतिका स्थान गौण है; जिसमें राज्यकर्त्ता अपने आर्थिक लाभकी रक्षाके लिए डायरशाही-जैसे काण्ड रचनेमें नहीं हिचकते और कोई भी पाप करते हुए नहीं डरते । यदि यह पद्धति ऐसी स्वार्थमय न होती तो अंग्रेजी राज्यको पराया कहनेका कोई मौका ही न आता । इस दलीलकी सचाईकी कसौटी यह है-- फर्ज कीजिए कि यह सरकार पंजाबके हत्याकाण्डका प्रायश्चित्त कर ले, विदेशी कपड़ेका आना बन्द कर दे, खादीको प्रोत्साहन दे, अफीम-शराबसे प्राप्त आय समाप्त कर दे, फौजी खर्जमें ७५ फीसदी कमी कर दे, हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकता कराना अपना कर्त्तव्य समझे तथा अन्यान्य बातोंमें लोकमतका आदर करे तो उसका विरोध कौन करेगा; और यदि कोई करे तो उसे कौन सुनेगा ? फिर हम दूसरी बातोंमें दोषयुक्त होनेपर भी वर्तमान अदालतों और पाठशालाओंका बहिष्कार नहीं करेंगे। पूर्वोक्त स्वार्थमय राजनीति आधुनिक या पाश्चात्य संस्कृतिका आधार है । परन्तु जो लोग इस प्रकार गहराई में जाना नहीं चाहते उनमें उसके प्रति विरोध जाग्रत करनेके लिए इस संस्कृतिसे उत्पन्न सरकारकी डायरशाही-जैसे स्पष्ट परिणाम पर्याप्त हैं ।

आप लिखते हैं कि सरकारी राजनीतिका उद्देश्य हममें "अंग्रेजियत" भरना है। हम जहाँ 'अंग्रेज' बने कि हमारे राज्यकर्त्ता तुरन्त खुशीसे राज्यकी बागडोर हमें सौंप देंगे और अपने आढ़तियोंके रूपमें हमारा स्वागत करेंगे। क्या अंग्रेज लोग इतने निःस्वार्थ भावसे यहाँ बने हुए हैं ? जिसे आप उनका दोष बताते हैं उसीको वे पुकार-पुकार कर अपना गुण बताते हैं । यदि हम यूरोपीय चाल-ढाल कुबूल कर लें तो क्या अंग्रेज यहाँसे चले जायेंगे ? हम अपनी इच्छासे उनके आढ़तिये कैसे बन सकते हैं ? इंग्लैंड और जर्मनीकी संस्कृति एक ही है। फिर भी उनमें झगड़े होते हैं या नहीं ? मैं तो कहता हूँ कि संस्कृति एक है, उनमें इसी कारण झगड़े होते हैं।

इसमें बहुत-सी बातें एक-साथ आ गई हैं । यदि हम जंगली हो जायेंगे तो हम खादीवादी नहीं रह सकेंगे। आधुनिक संस्कृति परिणाममें जड़वादी और अनात्म-वादी है। हमारे जंगली होने का यह अर्थ है कि हम दुनियाको लूटनेकी पद्धतिको स्वीकार कर लें। फिर हम किसानोंकी हालतकी ओरसे लापरवाह हो जायेंगे और