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टिप्पणियाँ

पशुबलको अपने जीवनका आधार बना लेंगे। इससे फौजका खर्च और अन्य खर्च तो ऐसे ही रहेंगे । यदि ऐसा होगा तो फिर उन्हें हमसे कोई शिकायत न रहेगी ।

जब हमारी जरूरतें बहुत बढ़ जायेंगी तब हम इंग्लैंडके सबसे बड़े खरीदार बन जायेंगे; और इस प्रकार उसके स्वेच्छापूर्वक खरीदार यानी आढ़तिया बन जायेंगे । इंग्लैंड और जर्मनीकी लड़ाई भी इसी संस्कृतिका किन्तु भिन्न रूपमें उत्पन्न फल है । दोनों देश निर्बल राष्ट्रोंसे लाभ उठाना चाहते थे और दोनों ज्यादासे ज्यादा हिस्सा मांगते थे, वे इसी कारण लड़ पड़े । परन्तु उनकी और हमारी लड़ाईमें भारी भेद है । इनका मुकाबला बराबरवालोंका था और उसमें स्व-प्रतिष्ठाका प्रश्न नहीं था । हमें तो प्रतिक्षण अपनी प्रतिष्ठाका खयाल रखना पड़ता है। यदि हम यूरोपकी संस्कृतिको ग्रहण कर लें तो फिर जबतक हम अंग्रेजोंके ग्राहक बने रहेंगे, तबतक हमारे और उनके बीच बहुत कालतक लड़ाई होनेकी सम्भावना न रहेगी। अंग्रेज लोग बार-बार यह बात कहते हैं कि हम अभी अपना कारबार चलाने लायक नहीं हुए। उनका यह कथन कोरा बहाना ही नहीं है। कितने ही लोग यह बात मानते है और कहते भी हैं कि जबतक हमारी संस्कृति जुदा रहेगी, हम तबतक यूरोपीय पद्धतिके अनुसार राज्य-संचालन करनेके योग्य न होंगे। दक्षिण आफ्रिका और अन्य देशोंको पूरी सत्ता प्राप्त है। इसका क्या कारण है ? शोधकोंको दिखाई देगा कि वहाँके गोरे एक ही संस्कृतिके पुजारी है। इससे वे इंग्लैंडके आढ़तिये बन गये हैं । इंग्लैंड अपना माल उन गोरोंकी मार्फत बेचता है। इससे उसे वहाँ खुद अपने आदमियोंको रखने की जरूरत नहीं होती । यह बात नहीं है कि उनका खून एक हो । अगर दक्षिण आफ्रिकाके गोरे आज निःस्वार्थ होकर वहाँके हबशियोंके हितोंको प्रथम स्थान दें तो उनके गोरे होनेपर भी इंग्लैंड बड़ी चिन्ता और दुविधामें पड़ जायेगा । हम यह तो देखते ही हैं कि जब कभी ऐसे परोपकारी अंग्रेज-सामने आते हैं तो अंग्रेजोंका समाज उनका बहिष्कार करता है ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २०-७-१९२४

२१६. टिप्पणियाँ

भाई इन्दुलालका पत्र

मुझे विश्वास है कि भाई इन्दुलाल याज्ञिकने मेरे नाम जो खुला पत्र लिखा है, वह सभीने पढ़ लिया होगा । उनके पत्रकी प्रत्येक पंक्तिसे देशप्रेम झलकता है। उसमें अविनय तो कहीं भी नहीं है। यदि ऐसे सद्भावसे लिखे गये पत्रमें कोई दोष हो भी तो उसे बतानेकी इच्छा नहीं होती। मेरा मन तो यही कहता है कि इस पत्रका उत्तर देना पाप है। उसका कोई उत्तर न देना क्या अपने-आपमें पूर्ण उत्तर नहीं है ? भाई इन्दुलाल बातकी गहराई में जानेवाले व्यक्ति है । वे प्रत्येक प्रश्नके अन्तिम छोरको समझ लेना चाहते हैं । वे स्वभावसे सिपाही हैं, इसलिए साहसी हैं ।