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लंगोटी, १ रुपये का तौलिया और १ रुपयेकी टोपियाँ -- यह कुल ९ रुपयेका खर्च हुआ। आजकल जिनके[१] हाथ में गुजरातकी पतवार है यदि उन्हें उनका अनुकरण करनेमें शर्म न लगे और वे टोपीके बिना काम चला लें तो वे इससे एक रुपया और बचा लेंगे । यदि वे इतना कपड़ा पहनने के बाद ३४ रुपयोंमें[२] से जो कुछ मुझे भेज देंगे तो मैं उसका उपयोग उड़ीसा के लोगों अथवा उन जैसे अन्य अस्थिपंजरोंके लिए करूँगा । कपड़े शरीर ढकने तथा सर्दी और गर्मी से बचने के लिए होते हैं । इस दृष्टिसे विचार करनेपर हमें घुटनोंतक की धोती, कुरते और टोपीके सिवा किसी और कपड़े की जरूरत नहीं है । हमारे देशकी आबोहवामें वास्कट और कोट केवल भाररूप हैं । मोतीलालजी धोती, कुरता और टोपी पहनकर धारासभामें जानेसे नहीं शर्माते । देशबन्धुकी पोशाक में भी इससे अधिक कुछ नहीं होता । अलीबन्धु धोतीके बजाय पाजामा पहनते हैं, बस इतना ही अन्तर है। इन सज्जनने एक सुझाव दिया है। वह भ्रमपूर्ण है । देशकी खातिर किसीको मैला कपड़ा पहननेकी जरूरत नहीं होती। जो अपनी धोती और कुरतेको सावधानी से धोते हैं उन्हें साबुनकी जरूरत भी नहीं पड़ती, पड़ती भी है तो बहुत कम । मैलापन आलसीपनका लक्षण है । उसका देशभक्तिसे कोई सम्बन्ध नहीं । खादीधारियोंका तो खास धर्म है कि वे अपने कपड़े दूध जैसे उजले रखें। हाँ, इतना अवश्य है कि फिर अनावश्यक कपड़ोंके लिए कोई अवकाश नहीं रहता और यदि अधिक कपड़े पहनने ही हों तो उनसे साबुनका अथवा धोबीका खर्च बढ़ेगा ही ।

"कातो, कातो, कातो"

एक महाराष्ट्रीय भाई लिखते हैं:[३]

मैं इस भाईके उदाहरणको प्रत्येक भाई-बहन के समक्ष प्रस्तुत करता हूँ। जिनमें ऐसी अचल श्रद्धा है कि शान्तिके द्वारा ही भारतको खरा स्वराज्य मिलेगा, उन्हें अन्य प्रपंचोंमें पड़ने की कोई जरूरत नहीं । शान्तिसे स्वराज्य मिलना वहीं सम्भव हो सकता है जहाँ लोग एकनिष्ठ हों और उनका लक्ष्य एक हो । अशान्तिकी सम्भावना वहीं होती है जहाँ कुछ लोग अधीर हो जायें, दूसरे उनका साथ न दें और इस कारण वे उनको जोर-जबरदस्ती से अपने साथ घसीटें । यह स्वराज्य नहीं है । यह तो आकाशसे गिरकर खजूरमें अटकने जैसा हुआ। इससे करोड़ों नर कंकालोंका भला नहीं होगा। इतना ही नहीं, इसमें उन्हें अनिच्छापूर्वक अपनी बलि देनी पड़ेगी । इससे नरमेधका युग, जो बीत गया माना जाता है, फिर वापस आ जायेगा । यूरोपमें तो नरमेध हो रहा है । वहाँका वर्तमान भयंकर युद्ध नरमेध नहीं तो क्या है ? यदि वह हिन्दुस्तान में होगा तो करोड़ोंका बलिदान लेगा, क्योंकि लोगोंमें उसका सामना करनेका साहस नहीं है ।

  1. १. गांधीजीका संकेत वल्लभभाई पटेलकी ओर है।
  2. २. पत्र लेखकने लिखा था कि किफायत करनेके बावजूद एक मनुष्यको खादीके कपड़ोंपर प्रतिवर्ष ३४ रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
  3. ३. यहाँ नहीं दिया गया है।