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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रत्येक खादी-प्रेमीको मेरी सलाह तो यह है कि वह ऐसा एक भी 'नये प्रकार-का चरखा' न खरीदे जिसे खादी बोर्डने पसंद न किया हो । नये प्रकारके अनेक चरखे बिलकुल निकम्मे साबित हुए हैं और उनके बारेमें जो दावा किया गया है। वह सत्य प्रमाणित नहीं किया जा सका है । अभीतक तो यही कहा जा सकता है कि यदि पुराने चरखेमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन कर दिया जाये तो कोई दूसरा चरखा उससे अच्छा नहीं हो सकता। इसलिए अच्छा यही होगा कि कोई भी व्यक्ति 'नये प्रकारके चरखे' में दिलचस्पी न रखे। लेकिन यदि किसीकी नजरमें कोई चमत्कार-पूर्ण चरखा आये तो इष्ट यह है कि वह उसे जाँचके लिए खादी बोर्डके पास भेज दे और खादी बोर्ड द्वारा पसन्द किये जानेपर ही उसका प्रचार अथवा क्रय-विक्रय करे ।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २०-७-१९२४

२१९. पत्र : वा० गो० देसाईको

आषाढ़ बदी ४, [ २० जुलाई, १९२४][१]

भाईश्री वालजी,

आपका पत्र मिला । महादेवने मुझे कल बताया कि स्वामीने आपका शिमला-सम्बन्धी लेख आपको भेज दिया है। उसने यह भी कहा कि उसे भेजे हुए २० दिन हो गये हैं। क्या आपको वह नहीं मिला ? जिन अवतरणोंके बारेमें आपने लिखा है उनके विषय में पूछताछ कर रहा हूँ। मेरा शिमला आना अभी तो बिलकुल अनिश्चित है। अभी तो पंजाबके दौरेकी तारीख भी तय नहीं हुई और आप शिमला आनेकी बात लिखते हैं । आप कोई अमीर उमराव हैं ? आप किसी प्रान्तके गवर्नर या लॉर्ड रीडिंग नहीं हैं । इसलिए आप अपने निमन्त्रण पत्रको तो अस्वीकृत ही समझें ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०१६) की फोटो-नकलसे ।
सौजन्य : वा० गो० देसाई
  1. १. इस पत्र में शिमला सम्बन्धी जिस लेखकी चर्चा की गई है वह सितम्बर, १९२४ के यंग इंडिया में प्रकाशित हुआ था । इस वर्षे आषाढ़ बदी ४, २० जुलाई की थी।