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२२०. पत्र : गंगाबहन वैद्यको
आषाढ़ बदी ६, [२२ जुलाई, १९२४ ][१]
चि० गंगाबहन,
पौत्रीको अपने साथ न लाओ । पिता भले ही बच्चीको स्वयं तुम्हारा पत्र मिला । तुम जब आना चाहो तब आ जाओ । ईश्वर सब अच्छा ही करेगा। मेरी सलाह तो यह है कि तुम अपनी पति-पत्नीको जैसा ठीक जान पड़े वैसा करने दो। आकर छोड़ जाये । यदि तुम उसको अभी ले आओगी तो इससे परेशानी बढ़नेकी सम्भावना है ।
मोहनदासके आशीर्वाद
- मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०१७ ) से ।
- सौजन्य : गंगाबहन वैद्य
२२१. पत्र : इन्द्र विद्यावाचस्पतिको
आषाढ़ बदी ६ [२२ जुलाई, १९२४][२]
चि० इन्द्र,
तुमारा दूसरा खत मीला । मेरा उत्तर मील गया होगा। फाइल भी मीली है । मैं दिल्ली पहोंचने के लीये उत्सुक हुं[३] । दाक्तरोंने डराया है इसलीये ठेहर गया हूं। हो सके इतनी त्वरासे पहोंच जाऊंगा ।
मोहनदासके आशीर्वाद
प्रो० इन्द्र
'अर्जुन' कार्यालय
दिल्ली
'अर्जुन' कार्यालय
दिल्ली
- मूल पत्र (सी० डब्ल्यू ० ४८५८ ) से ।
- सौजन्य : चन्द्रगुप्त विद्यालंकार