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२२२. पत्र : फूलचन्द शाहको

[२३ जुलाई, १९२४][१]

भाई फूलचन्द,

तुम्हारा पत्र मिला । तुम्हारे सम्मुख एक ही मार्ग है। इस स्कूल में[२] प्रवेशके सम्बन्धमें व्यवस्थापकोंने अन्त्यजोंको जो वचन दिया है उसका उल्लंघन किया ही नहीं जा सकता। तुम्हें अन्त्यजोंका स्वागत करना ही चाहिए और अगर इससे स्कूल खाली हो जाये तो उसे सहन करना चाहिए। यदि व्यवस्थापक इस इमारतको तुम्हें सौंप कर नया स्कूल बनाना चाहें तो बना सकते हैं। नींव रखते समय जो सिद्धान्त स्थिर किया गया था वह कैसे बदला जा सकता है ? में इस बारेमें 'नवजीवन 'में टिप्पणी अवश्य लिखूंगा ।[३]

बापूके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ]

तुम अपनी शान्ति, धैर्यशीलता और विनय मत छोड़ना ।

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २८२१) से ।
सौजन्य : शारदाबहन शाह

२२३. शिक्षकोंकी दीन दशा

एक जिलेमें चौदह राष्ट्रीय पाठशालाओंमें से सात बन्द हो गई हैं। शेष बन्द होनेकी तैयारीमें हैं और विद्यार्थियोंकी संख्या दो हजारसे घटकर पाँच सौ रह गई है । इन पाठशालाओंमें से एक पाठशालाके प्रधान शिक्षक पाठशालाओंकी दीन-दशाका वर्णन करते हुए लिखते हैं :

यदि सच कहूँ तो हमारी राष्ट्रीय पाठशालाओंके बहुतेरे शिक्षकोंकी हालत ऐसी हो गई है कि अपने अधपेट रहनेवाले परिवारका और भीषण कर्ज के बोझका विचार करते हुए उनका दिल दहल उठता है और मनमें ऐसा अन्देशा होने लगता है कि ऐसे कर्जदार व्यक्तिके लिए इतना कष्ट सहन करते रहकर देशकी

  1. १. डाकखानेकी मुहर से ।
  2. २. काठियावाड़ में बढ़वानका राष्ट्रीय स्कूल ।
  3. ३. देखिए “धर्मकी कसौटी", २७-७-१९२४ ।