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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि १ फीसदी लोग भी पाठशालाओंकी परवाह न करते हों तो संचालकोंको कबतक इतनी बड़ी आर्थिक हानि सहकर उन पाठशालाओंको चलाना चाहिए ?

यदि लोगोंको पाठशालाकी कुछ भी गरज न हो तो उस पाठशालाको जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है । परन्तु जिन लोगोंने पाठशालाएँ स्थापित की हों उन्हें यदि बादमें उसकी आवश्यकता न दिखाई दे तो मैं संचालकोंको ही दोष दूँगा ।

शिक्षाको बन्द रखना और कार्यकर्त्ताओंके लिए कष्टसहन करना एक सालतक, दो सालतक बहुत हुआ तो तीन सालतक सम्भव है, परन्तु यदि स्वराज्यकी लड़ाई वर्षों तक जारी रहे तो फिर क्या करें ?

जो एकसे तीन सालतक कष्ट सहन कर सकेंगे, उनमें तीस सालतक कष्ट सहने की क्षमता आ जायेगी ।

जहाँ एक भी राष्ट्रीय पाठशाला न हो, वहाँ राष्ट्रीय शिक्षा पानेकी इच्छा रखनेवाले इने-गिने लड़कोंका क्या होगा ?

अगर माता-पितामें अथवा खुद छात्रोंमें सूझ हो तो उन्हें रास्ता अवश्य दिखाई देगा । यह मानना कि शिक्षा केवल पाठशालाओं में अथवा महज अंग्रेजीके ही द्वारा या सिर्फ पुराने तरीकेसे ही मिल सकती है, गलतफहमी है। वर्तमान हालतमें तो कताई और बुनाई सीखना ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षा है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अधिकांश गाँवोंमें तो पाठशालाएँ बिलकुल हैं ही नहीं ।

हमारे देशबन्धु कबतक ऐसे प्रस्ताव पास करते रहेंगे जिनके पालन करनेकी कभी उनकी इच्छा ही न हो ? सब लोग सरकारी पाठशालाओंके बहिष्कारकी राय वेंगे और फिर इनमें से इने-गिने सज्जन ही अपने बालकोंको राष्ट्रीय पाठशालाओंमें भेजेंगे ।

मुझसे बने तो अब एक क्षण भी नही । पिछले कांग्रेस अधिवेशन मे मेरी तमाम लड़ाई इसको लेकर थी कि हम प्रस्तावो के प्रति सच्चे रहें ।

मैं जानता हूँ कि मैंने जो उत्तर दिये हैं उनसे बहुतोंको सन्तोष न होगा । परन्तु मैं कहता हूँ कि ये ही जवाब सही और व्यावहारिक हैं। हमें पाखण्डको तिलांजलि तो दे ही देनी चाहिए । सरकारी पाठशालाओंके बहिष्कारके प्रस्तावकी खातिर (उनकी जगह भरनेके लिए नहीं,) यदि सारे देशको राष्ट्रीय पाठशालाओंकी जरूरत महसूस न हो तो बहिष्कारके प्रस्तावमें परिवर्तन करना जरूरी है। इसके बाद जो थोड़े लोग बहिष्कारके पक्षमें रहें उन्हें कांग्रेसकी देखरेख में नहीं, बल्कि अलहदा राष्ट्रीय पाठशालाएँ चलाकर बहिष्कारकी अपनी इच्छा पूरी करनी चाहिए। ये पाठशालाएँ वहीं चलेंगी जहाँ उनकी जरूरत होगी। यदि ऐसी एक भी पाठशाला होगी तो वह भी बिना निराशाका अनुभव किये चलती रहेगी। श्रद्धा निराश होना नहीं जानती ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २४-७-१९२४