पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/४६३

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२२४. सी० एफ० एन्ड्रयूजके लेखपर टिप्पणी

महाकविकी[१] लोकोपकारी और शान्तिके प्रचारार्थ की गई विदेश- यात्राके[२] प्रभाव-के बारेमें पूरे विवरण के लिए मैं पाठकोंसे कहूँगा कि वे 'विश्व भारती' पत्रिका के सम्पादकों द्वारा उनकी विदेश यात्राके सिलसिलेमें प्रकाशित की गई 'विश्व भारती' की सुन्दर विज्ञप्तियाँ पढ़ें ।

[ अंग्रेजी से ]
यंग इंडिया, २४-७-१९२४

२२५. सूतका क्या किया जाये ?

खादी बोर्डसे बराबर पूछताछ होती रहती है कि कांग्रेसके प्रतिनिधि जो सूत भेजेंगे, उसका क्या उपयोग किया जायेगा। कांग्रेसके प्रस्तावके अनुसार प्रत्येक प्रति-निधिको प्रति मास कमसे कम २,००० गज अच्छा बटदार, एक-सा सूत भेजना है। यह सूत यों तो चन्देके रूपमें दिया जाना है; पर इसके बारेमें तरह-तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं। कुछ सदस्य अपना सूत अपने पास रखते जाना और अपने इस्तेमाल के लिए उसकी खादी बनवाना चाहते हैं । यह विचार उत्तम है, किन्तु मेरी सलाह है कि फिलहाल इस इच्छाको दबाया जाये। किसी भी कार्यक्रमकी क्षमता उसकी एकरूपता, नियमितता तथा उसके अमलकी व्यापकतापर निर्भर करती है । महत्त्व परिमाणका हुआ करता है। किन्तु यदि प्रत्येक सदस्य अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करना चाहे तो बड़े परिमाण में सूत प्राप्त करना असम्भव हो जायेगा । यद्यपि प्रत्येक सदस्य द्वारा अपने ही परिधान के लिए सूत काते जाने के पक्षमें बहुत कुछ कहा जा सकता है, पर इस समय सहकारी कताईके पक्षमें अपेक्षाकृत अधिक कहने को है । यदि यह देखा जाये कि पार्सले प्रत्येक प्रान्तमें बनाई जायेंगी और केन्द्रीय बोर्डको भेजी जायेंगी तो सूत भेजनेकी लागतका कोई बड़ा महत्त्व नहीं रह जाता; पर उसके फायदे तो देखिए : १. हर महीने सूत इकट्ठा होगा । २. कताईकी किस्मकी माहवारी जाँच हो सकेगी और उसके फलस्वरूप उसमें सुधार हो सकेगा ।

  1. १. रवीन्द्रनाथ ठाकुर ।
  2. २. इसके साथ ही श्री एन्ड्यूजका लेख " सुदूर पूर्वमें भारत " दिया गया है जिसमें अन्य बातोंके साथ-साथ महाकविकी जापान-यात्राका विवरण है। २४-२८