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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


३. कातनेवालोंमें ढिलाई की सम्भावना कम रहेगी।
४. सूतकी किस्म और उसके कुल परिमाणके बारेमें कातनेवालोंमें और प्रान्तों में भी एक स्वस्थ स्पर्द्धा बनी रहेगी ।
५. यदि कांग्रेस के सदस्य प्रस्तावकी भावनाके अनुकूल ही आचरण करते रहें तो खद्दरके दाम निश्चित ही गिरते जायेंगे ।

खादी बोर्डको मेरी सलाह है कि वह इस सारे सूतका कपड़ा वहीं बनवाये जहाँ सस्ती से सस्ती बुनाई हो सकती हो, किन्तु यदि प्रत्येक प्रान्त अपना सूत अपने ही यहाँ बनवा लेना पसन्द करे तो बात दूसरी है । यदि खादी बोर्ड ठीक समझे तो दुर्भिक्ष-पीड़ित क्षेत्रों में गरीबोंको खादी बहुत ही सस्ते दामोंमें दी जाये । यदि कातने-वाले खरीदना चाहें तो वह उन्हें भी रियायती दरपर दी जा सकती है। किन्तु इस सूतसे तैयार होनेवाली खादीका क्या किया जायेगा इसके बारेमें अन्तिम निर्णय करनेका समय अभी नहीं आया है। बहुत-कुछ इसपर निर्भर करेगा कि कितना सूत इकट्ठा होता है। अपने ही काते हुए सूतसे बुनी हुई खादी पहनने के लिए उत्सुक लोगोंको मेरी सलाह है कि सारे सूतको एक जगह इकट्ठा करना और फिर प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने दिये हुए सूतके वजनके बराबर खादी प्राप्त करना कहीं अधिक श्रेयस्कर होगा। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके प्रस्तावसे जो परिस्थिति उत्पन्न हुई है, सामान्य भण्डारमें जमा होने के लिए अपने सूतको दानमें देनेकी तुलनामें अपने काते सूतकी खादी पहनने की इच्छा स्वार्थपूर्ण ही मानी जायेगी । और अन्तिम विचारणीय बात यह है कि कोई भी सदस्य अगर न चाहे तो २,००० गजसे अधिक सूत भेजने के लिए बाध्य नहीं है । वह राष्ट्रको नित्य आधा घंटा दे और शेष आधे घंटे में अपने उपयोगके लिए श्रम करें। मैं नये सीखनेवालोंको बता दूं कि अनेक कार्यकर्त्ता २,००० गजका अपना हिस्सा कबका पूरा कर चुके हैं और जो अपना सारा अतिरिक्त समय कताईमें लगा रहे हैं, वे तो १०,००० गजसे भी अधिक सूत कातनेकी आशा करते हैं। गुजरात विद्यापीठके कुछ अध्यापक यद्यपि कांग्रेसके प्रतिनिधि नहीं हैं तो भी प्रतिमास प्रति व्यक्ति ५,००० गज सूत कात रहे हैं। इसमें से वे ३,००० गज राष्ट्रको देंगे और बाकी २,००० गज अपने निजी उपयोगके लिए रखेंगे। मैं कांग्रेसी स्त्री-पुरुषोंसे अनुरोध करता हूँ -- वे चाहे प्रतिनिधि हों या न हों -- कि उनको फिलहाल प्रसन्नतापूर्वक और सच्ची लगनसे राष्ट्रीय योजनाकी पूर्ति में सहायक बनना चाहिए फिर चाहे यह योजना उनको अपूर्ण ही क्यों न लगती हो । वे देखेंगे कि हार्दिक सहयोगके परिणामस्वरूप वह पूर्ण बन जायेगी । मानव मस्तिष्क अभीतक ऐसी कोई भी योजना नहीं बना पाया है जिसमें दोष न रहा हो अथवा जिसकी आलोचना न की गई हो। पर व्यावहारिक बुद्धिमत्ता इसी बातमें है कि जिस योजनाको बहुमतने पसंद कर लिया हो, उसको कार्यान्वित करनेमें सहायता दी जाय । प्रत्येक आपत्तिको इतना महत्त्व नहीं देना चाहिए कि वह अन्तःकरणका प्रश्न बन जाये । मूल आपत्तियाँ तो सचमुच बहुत ही थोड़ी होती हैं । कुछ भी हो; यह निर्णय करनेमें तो अन्तःकरणका कोई प्रश्न ही नहीं उठता कि २,००० गज सूत