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नैराश्यपूर्ण चित्र

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[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २४-७-१९२४

२२६. नैराश्यपूर्ण चित्र

अमृतसर से एक मुसलमान सज्जनने भावनापूर्ण पत्र लिखा है :

आजकल उत्तर भारत और पंजाब में हिन्दुओं और मुसलमानोंमें खुलकर संघर्ष होना एक रोजकी बात ही हो गई है। इससे यह साबित होता है कि ये दोनों ही गुलाम कौमें अपने देशमें उठनेवाले प्रश्नोंका निबटारा करनेमें सर्वथा असमर्थ हैं -- यही नहीं वे अनेक अनमेल तत्त्वोंवाले इस विशाल देशके शासनकी बागडोर अपने हाथों में लेनेके अयोग्य हैं ।

दोनोंके बीच विरोध मिटानेके आपके प्रयत्न सफल तो हुए थे; पर आपके जेल जाने के बाद झगड़ालू लोग फिर सामने आ गये । आपके जेल जानेसे पहले जहाँ-जहाँ दोनों कौमोंमें लम्बे अर्सेसे साथ रहनेके कारण परस्पर सहानुभूति और भाईचारा था वहीं आज फूट और दुश्मनी है। पंजाबके तमाम बड़े-बड़े शहर इन दोनों जातियोंकी आपसकी लड़ाईके अखाड़े हो गये हैं और यह आशा नहीं दिखाई देती कि भूतकालके मीठे सम्बन्ध फिर कभी बहाल हो सकेंगे ।

कृपया रोगके असाध्य होनेसे पहले इसके इलाजका कोई रास्ता निकालिये। कृपा करके पंजाब पधारिए और खुद अपनी आँखों सब हाल देखिए । जबतक आप फिर उसी स्थितिको नहीं ला पाते, तबतक आपकी खादीकी हलचल व्यर्थ है । कहाँ १९१९ के अमृतसरके वे शानदार दिन और कहाँ आजको यह निराशा-भरी तसवीर । इस नगरकी आबादी कोई २ लाख है, पर उसमें ५० आदमी भी मुश्किलसे खादीधारी दिखाई देंगे; और जो हैं सो भी इसी कारण कि वे कांग्रेस कमेटियोंमें किसी-न-किसी पदपर हैं और यह सब हिन्दू-मुसलमानोंके बीच फैले हुए तनाजेका नतीजा है। इस खराबीको हटाइए, दूसरी सब बातें अपने-आप दुरुस्त हो जायेंगी । अफसोस है कि संगठनकी बुनियाद किसी बुरी साइतमें रखी गई थी।

पत्रलेखक द्वारा खींची गई यह तसवीर निःसन्देह अतिरंजित है। पंजाबमें अगर हिन्दुओं और मुसलमानोंमें रोज खुल्लमखुल्ला लड़ाई हो रही हो तो वहाँ लोगोंका रहना बहुत ही कठिन हो गया होता । पर मुझे इस बात में कोई सन्देह नहीं कि बाह्य दृष्टिसे तो पंजाब दूसरे किसी भी प्रान्तके बराबर ही शान्त है । फिर यह सज्जन सारा दोष संगठनके ही मत्थे मढ़ते हैं । यह उनकी भूल है । रोग तो था