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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भारत 'व्हाइट क्रॉस' को अपने इस पुनीत कार्यमें सहयोगका भरोसा दिलाता है । अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने अभी हालमें ही एक प्रस्ताव पास किया है। उसमें भारत सरकारकी अफीम सम्बन्धी नीतिकी तीव्र निन्दा की गई है। यदि पोस्त-का एक-एक पौधा जड़से उखाड़कर फेंक दिया जाये तो भी देशमें उसके विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठेगी।[१] जब मादक पेयों और नशीली चीजोंकी सारी आमदनी बन्द हो जायेगी, वे प्रमाणित दवाफरोशों द्वारा केवल औषधिके रूपमें ही बिक सकेंगी और इसके अतिरिक्त उनकी बिक्री बिलकुल निषिद्ध कर दी जायेगी, तब जनता सचमुच खुशी मनायेगी ।

किन्तु हमारा और संसारका दुर्भाग्य है कि भारतका मत आज एक ऐसी सरकार व्यक्त करती है, जो जनताकी प्रतिनिधि नहीं है । अतः आगामी सम्मेलनमें प्रतिनिधित्व भारतकी जनताका नहीं होगा, भारतकी विदेशी सरकारका होगा और उसमें मुख्यतः मानवताके हितका खयाल इतना नहीं किया जायेगा जितना उसकी अपनी आमदनीका । जनताका वास्तविक प्रतिनिधित्व करनेवाले, श्री एन्ड्रयूज-जैसे किसी गैर-सरकारी प्रतिनिधिको भेजनेसे कोई उपयोगी उद्देश्य सिद्ध होगा या नहीं, इसपर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको विचार करना चाहिए ।

किन्तु अब हम यह देखें कि इस मानव हितकारी जिहादका लक्ष्य क्या है । कुमारी ला माँटने अकाट्य आँकड़ोंके बलपर सिद्ध कर दिया है कि संसारमें अफीमका उत्पादन उसकी भैषजिक आवश्यकताओंसे बहुत अधिक हो रहा है और जबतक यह जारी रहेगा तबतक -- चाहे उसके विरुद्ध कितने ही प्रयत्न किये -- जायें उसका अनैतिक और आत्मघाती व्यापार जारी रहेगा। उन्होंने यह भी सिद्ध किया है कि भारत सरकार ही इस मामलेमें सबसे बड़ी अपराधी है। हम अपने लक्ष्यपर तबतक नहीं पहुँच सकते, जबतक भारत सरकार लागतकी परवाह किये बिना, अपने क्षेत्राधिकारमें अफीमकी खेती यथासम्भव कमसे कम करके, ईमानदारीसे संसारके सर्वश्रेष्ठ विचारकोंकी इच्छा पूरी नहीं कर देती । केवल भारत सरकारने ही रास्ता रोक रखा है और डर है कि वह आगे भी ऐसा ही करेगी, इसलिए नहीं कि भारतकी जनता ऐसा चाहती है, बल्कि इसलिए कि भारत इस समय असहाय है ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २४-७-१९२४
  1. १. पत्र में कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार अफीम-निषेधमें जनता के विरोधकी जबरदस्त सम्भावना मानती है।