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२२९. वचन-पालन

श्री एम० के० आचार्यकी खुली चिट्ठी पाकर मैंने उनको वचन दिया था कि मैं 'यंग इंडिया' में उसका जवाब देनेकी कोशिश करूँगा । अफसोस है कि मैं इससे पहले जवाब न दे सका। इस चिट्ठीको खूब गौरसे पढ़ने के बाद मेरा खयाल है कि मतभेदकी बहुत गुंजाइश नहीं है । मेरी खुशनसीबी है कि मैं बातोंपर अपने प्रति-पक्षीके दृष्टिकोणसे विचार कर पाता हूँ और उस हृदतक उनके विचारोंमें भी शरीक रहता हूँ और यह मेरी बदनसीबी है कि मैं सदा उन्हें अपने दृष्टिकोणके अनुसार देखने के लिए राजी नहीं कर पाता । यदि यह सम्भव होता तो मतभेद होते हुए भी हमारे बीच सुखदायी सहमति हो सकती थी ।

असहयोग के कारण और मूल विषयके निरूपणके सम्बन्धमें मेरे और श्री आचार्य-के बीच काफी इत्तिफाक है । लेकिन कांग्रेसके प्रस्तावकी रचनाके बारेमें मेरा और उनका मतभेद ही है । उनकी दृष्टिसे देखूं तो मैं यह बात मान लूँगा कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सामने पेश मेरे प्रस्तावोंका प्राक्कथन कांग्रेसके प्रस्तावके शब्दोंसे आगे जाता है। लेकिन (मुझे कहना चाहिए तबसे ) स्थिति बिलकुल बदल गई है। मैं उनसे अनुरोध करता हूँ कि वे इससे पहलेकी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके प्रस्तावोंका अध्ययन करें । उन्हें उसमें प्राक्कथनकी रूपरेखाकी झलक मिल जायेगी । मेरा खयाल था कि सविनय अवज्ञाकी तैयारीके लिए चरखा अख्तियार करना अनिवार्य ही माना गया है। प्रस्तावोंमें यह शर्त बार-बार रखी गई है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी आखिरी बैठकमें बहुत-सी बातोंका पूर्ण विरोध तो किया गया था, लेकिन इस प्राक्कथनके विरुद्ध एक शब्द भी नहीं कहा गया था । क्योंकि हरएकने सविनय अवज्ञाके लिए चरखेको पहले ही आवश्यक मान लिया था । मेरा खयाल है कि मेरा उस प्राक्कथनको पेश करना ठीक ही था ।

कताईकी खूबियोंको ध्यान में रखते हुए मैं अपना यह विश्वास दोहराता हूँ कि जबतक कताई व्यापक न होगी, तबतक जनताका स्वराज्य नहीं आ सकता । यह सच है कि हम लोग परदेशी सत्ताके अधीन होने से पहले कातते तो थे लेकिन उस वक्त उसकी राष्ट्रीय उपयोगिता नहीं समझते थे । क्या हम अशुद्ध वायु ग्रहण करके अकसर अपने फेफड़े खराब नहीं कर लेते ? जब वे खराब हो जाते हैं तभी उनकी और शुद्ध वायुकी जरूरत समझ में आती है । चरखेको फिर अपनानेके मानी होते हैं बहुत-सा संगठन, बहुत-सा सहयोग, बहुत से पैसेकी बचत, उसका जनतामें वितरण और यहाँ बने रहने के लिए अंग्रेजोंके लालच में उस हदतक कमी । इसलिए जब कोई मुझसे चरखेसे स्वराज्य स्थापित करनेकी सम्भावनाके बारेमें सवाल करता है तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है । मुझे यह कहने की जरूरत नहीं है कि मैंने स्वराज्य पाने के लिए हर राष्ट्रको हर हालत में चरखा चलाना आवश्यक नहीं बताया है। श्री आचार्य देखेंगे