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२३०. टिप्पणियाँ

पी० बी० से

आपके प्रश्नोंका उत्तर देने में जो विलम्ब हुआ उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ । उत्तर इस प्रकार हैं :


(१) मैं विदेशी कपड़ेपर जबरदस्त आयात कर लगानेका हिमायती हूँ, भले ही उससे खादीको लाभ न पहुँचकर केवल देशी मिलोंको ही लाभ क्यों न पहुँचे। मैं विदेशी कपड़ेका पूर्ण बहिष्कार करने के लिए आतुर हूँ । मुझे खादी और देशी मिलोंके बीच प्रतियोगिताका डर नहीं है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि हमारी मिलें आज भारतकी आवश्यकता पूरी करने की स्थितिमें नहीं हैं । किन्तु मान लें कि वे खादीसे प्रतियोगिता करती हैं तो मैं उस हालत में जनताकी सुरक्षाके लिए खादीको अपनी मिलोंके विरुद्ध उसी प्रकार निःसंकोच संरक्षण दूँगा, जिस प्रकार मैं इस समय देशी मिलोंको विदेशी प्रतियोगिता के विरुद्ध संरक्षण देना चाहता हूँ । मेरे आँकड़ोंके अध्ययनसे सिद्ध होता है कि विदेशी कपड़े के बहिष्कारसे हमारी मिलों और हाथकती खादी दोनोंको समान रूपसे लाभ पहुँचेगा ।


(२) खादीको संरक्षण देना जबरदस्ती नहीं है, ठीक उसी तरह जैसे मद्य-पानके निषेधको जबरदस्ती नहीं कहा जा सकता। यह राज्यका कर्त्तव्य नहीं है कि वह किसी अल्पसंख्यक वर्गके हित के लिए किसी ऐसी वस्तुको प्रोत्साहित करे जिसे जनमत समस्त जनताके नैतिक या भौतिक कल्याणकी दृष्टिसे अहितकर मानता है ।


(३) यदि विदेशियोंके साथ, जैसा आज किया जाता है वैसा, बहुविध पक्षपात न किया जाये तो मैं विदेशी पूँजीके अथवा विदेशियोंके भारतमें आनेसे नहीं डरता । हम उचित और बराबरीकी प्रतियोगितामें भली-भाँति टिक सकते हैं।


(४) मैं व्यक्तिगतरूपसे बड़े-बड़े न्यासों तथा विशाल यन्त्रों द्वारा उद्योगोंके केन्द्रीकरणका विरोधी हूँ । किन्तु इस समय मेरा काम शोषणकी उस जबरदस्त प्रणालीको नष्ट करना है, जो भारतका विनाश कर रही है । यदि भारत खादी तथा उसकी आनुषंगिक बातोंको अपना लेता है तो मुझे आशा है कि भारत आधुनिक यन्त्रोंकी प्रणालीको भी उसी हदतक अपनायेगा, जिस हदतक वह जीवनकी सुविधाओं तथा जीवनकी रक्षाके कामोंके लिए आवश्यक मानी जा सकती है।

आचार्य गिडवानी

श्रीमती गंगाबाई गिडवानीको अपने पतिका निम्नलिखित पत्र[१] प्राप्त हुआ है :

  1. १. यहाँ नहीं दिया जा रहा है । पत्रमें जेल जीवनका वर्णन था और अन्तमें कुछ मित्रों और रिश्तेदारोंको पत्र लिखनेके लिए धन्यवाद दिया गया था ।