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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खादीकार्यकी झलक

उपरोक्त शीर्षकसे अध्यवसायी श्री बी० एफ० भरूचाने अपने बंगालके दौरेका विवरण प्रकाशित किया है। विवरण में कामकी बातें हैं और वे कामकाजी और शिक्षाप्रद भी हैं। मैं उस अनुच्छेदको छोड़ देता हूँ, जिसमें उन्होंने इस बातंपर दुःख प्रकट किया है कि यदि अहमदाबादकी मिलोंने बंग-भंगके दिनोंमें धोखा न दिया होता तो आज बंगाल पूर्णतः स्वदेशी के रंगमें रंगा होता और साथ ही इस बातकी भी शिकायत है कि सिराजगंजकी स्वदेशी प्रदर्शनीमें डा० प्रफुल्लचन्द्र रायकी दुकानको छोड़कर बाकी सब दुकानोंकी खादी अशुद्ध थी । श्री भरूचाने देशबन्धु दाससे यह अपील की है कि वे सत्याग्रहियोंसे खद्दर पहनने का आग्रह करें तथा शुद्ध खादी संगठनके लिए कुछ कार्यकर्त्ता अलग रख दें; मैं इसे भी छोड़ रहा हूँ, किन्तु डा० राय और उनके योग्य सहायक बाबू सतीशचन्द्र दासगुप्तके शानदार कामके बारेमें श्री भरूचाने जो उत्साहपूर्ण रिपोर्ट दी है उसे मैं अवश्य दूँगा ।[१]

डा० प्र० चं० राय बंगालमें चरखेके सन्देशवाहक हैं। रसायनशास्त्र के ये बूढ़े आचार्य दुर्बल तन और कमजोर स्वास्थ्यके बावजूद भी दुर्भिक्ष और बाढ़से बरबाद बंगालके किसानोंकी रक्षा के लिए खेतों और जलप्लावित क्षेत्रोंमें घूम रहे हैं और आज वे इसकी जो अमोघ औषधि बता रहे हैं . . . वह औषधि है घर-घर में चलनेवाला पुरातन चक्र अर्थात् चरखा । राजशाही और अन्य जलप्लावित क्षेत्रों में डा० रायने चरखेको पुनरुज्जीवित करके और खद्दरको लोकप्रिय बनाकर भूखों मरते लोगोंकी रक्षा की है। इसके अतिरिक्त इन्होंने बंगाल में खद्दर प्रचारके लिए खादी निकाय[२] खादी-प्रतिष्ठान [३] और देशी रंग-निधिका[४] सूत्रपात किया है। उन्हें अपने चरखों और करघोंको काम देनेके लिए प्रति सप्ताह तीन हजार रुपयोंकी आवश्यकता होती है । . . . डा० रायते स्वयं खादीके कार्यके लिए अपनी जीवन-भरको संचित कमाई ४०,००० रुपये की राशि भी दे दी है। सचमुच, बंगालमें वे खादीके सन्देशवाहक हैं ।

अब मैं अपने देखे हुए कताई और बुनाईके केन्द्रोंके कामकी कुछ झलक दूँगा ।[५]

मैं श्री भरूचाकी इस कल्याण-कामनामें अपनी भी कल्याण-कामना जोड़ता हूँ ।

श्री भरूचा हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकता स्थापित करनेकी चरखेकी - क्षमता के बारेमें भी उतने ही उत्साही हैं। इस बारे में उनका अनुच्छेद यह है ।

  1. १. अंशतः उद्धृत ।
  2. ,२,
  3. ३ और
  4. ४. आचार्य राय द्वारा रचनात्मक कार्यक्रमके लिए स्थापित लोकप्रिय संस्थाएँ ।
  5. ५. इसके बाद अतराई, रानीनगर, तलोरा और सुखिया (चटगाँव) केन्द्रोंके रचनात्मक कार्य और उसके संगठनका विवरण तथा संगठनकर्ता सतीशचन्द्र दासगुप्तके काम और स्वभावकी प्रशस्ति और उनकी कल्याण-कामनाका विवरण था । वह यहाँ नहीं दिया जा रहा है ।