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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यवस्था करें। इसमें कठिनाइयाँ तो अनेक हैं; परन्तु उन्हें दूर करनेमें ही हमारी क्षमताकी कसौटी है । हमें देहातमें इतनी जागृति और इतना विद्यानुराग पैदा करना चाहिए । चरखेकी हलचलके मूलमें ये सब बातें निहित हैं। जिला और तहसील समितियोंको उचित है कि वे इन कामोंको सावधान होकर करें।

खेड़ा जिला

गुजरातमें कताईकी जो स्पर्धा हो रही है वह स्वागतके योग्य है । खेड़ा जिला कमेटीने हर मास ५००० गज सूत कातनेका प्रस्ताव स्वीकार किया है और कमसे-कम ५०० स्त्री-पुरुषोंसे इतना सूत कतवानेका निश्चय करके कताईका काम ताल्लुकों और महालोंमें बाँट दिया गया है। मैं आशा करता हूँ कि खेड़ा जिला निवासी इतने से ही सन्तुष्ट न हो जायेंगे। हम तो अन्ततः लाखों लोगोंका आध घंटेका श्रम माँगते हैं । इसलिए मैं खेड़ा जिला समितिको धन्यवाद देनेके साथ ही इतनी चेतावनी भी देता हूँ कि मैं उनकी ५०० कातनेवालोंको प्राप्त करनेकी प्रतिज्ञाको इससे भी बड़ी संख्या की सूचक मानता हूँ। यह खेड़ाकी शक्तिकी हद नहीं हो सकती है। मैं आशा करता हूँ कि खेड़ा जिला कमेटीकी तरह दूसरी कमेटियाँ भी इसके लिए आवश्यक कार्रवाई करेंगी ।

मुस्लिम खादी समिति

श्री सैयद हुसैन उरेजीने एक सूची[१] प्रकाशित करनेके लिए भेजी है :

मैं मौलाना आजाद सुभानीको तथा अहमदाबादके मुसलमान भाइयोंको इस समितिकी स्थापनापर बधाई देता हूँ । यों तो सारे हिन्दुस्तानमें खादीका प्रचार शिथिल पड़ा है; परन्तु मुसलमान भाइयोंने तो आम तौरपर खादीसे अपना नाता तोड़-सा लिया है। सुना है कि पिछली ईदके दिन शायद ही कोई मुसलमान खादीके लिबास में दिखाई देता था । यदि यह खादी समिति चाहे तो बहुत अधिक काम कर सकती है। चरखेकी हलचल एक ऐसी हलचल है कि इसमें हिन्दू और मुसलमान एक-सा योग दे सकते हैं। कुछ दस्तकारियोंमें मुसलमान दुनियामें सबसे आगे हैं। इन-में से एक बुनाई है । ढाकाकी मलमल बुननेवाले मुसलमान ही थे । इसीलिए जुलाहों-को 'नूरबाफ' कहते हैं; उनका यह नाम बहुत मीठा और गौरवास्पद है । जरीके काममें उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। पटनाका नूरबाफका काम दुनिया-भर में प्रसिद्ध है । आज भी महीन कढ़ाईकी कलामें प्रवीण मुसलमान ही हैं। वे आज विदेशी सूत काममें लाते हैं। वे ही पहले हाथ-कता सौ अंकका महीन सूत बुनते थे। ढाकाकी ' शबनम ' भी वे लोग ही बुनते थे । इस खादी आन्दोलनमें उसी कलाका पुनरुद्धार अभिप्रेत है । हजारों नूरबाफ अपना यह पेशा छोड़ बैठे हैं । वे अपनी रोजी इस खादीके रोजगारसे फिर कमाना शुरू कर सकते हैं। आज भी बीजापुरकी मुसलमान बहनें महीन सूत कातती हैं । यदि मुसलमान बहनें चाहें तो महीनसे-महीन सूत कात सकती हैं। यदि यह समिति उद्योग करे तो बहुत काम कर सकती है। मैं मान लेता

  1. १. यह यहाँ नहीं दी गई है।