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धर्मकी कसौटी

हूँ कि इसका हर एक सभासद शुद्ध खादी ही पहनता है और इसका हर सभासद हर मास कमसे-कम २००० गज सूत कातेगा। यदि समिति सफलता चाहती है। तो उसके कुछ सभासदोंको अपना सारा समय इस कामके लिए लगाना होगा । मैं समितिकी सफलता चाहता हूँ ।

छात्र गणपत

पाठकों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि छात्र गणपत वापस घर आ गया है ।[१] मुझे आशा है कि इस भाईके ध्यानमें जो अन्याय आया है वह उसके निवारण-का उपाय खोजना बन्द न करेगा । यदि वह इस सम्बन्ध में खोज करेगा तो उसे ज्ञात होगा कि इसका उपाय स्वराज्य प्राप्त करना है और स्वराज्य प्राप्त करनेका साधन चरखा है। इसलिए छात्र गणपतको अपना अध्ययन जारी रखते हुए चरखे के सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए । उसे नित्य सूत कातना चाहिए और फिर सूत प्रान्तीय कमेटी को भेज देना चाहिए। जब वह चरखा चलायेगा तब उसे बीच में अन्य उपाय भी मिलेंगे ।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २७-७-१९२४

२४१. धर्मकी कसौटी

वढ़वानकी राष्ट्रीय पाठशालापर घटाएँ घिर आई हैं। ये घटाएँ बिखर जायें या और भी घनी हो जायें तथा घनी होकर स्कूलपर बरस पड़ें -- चाहे कुछ भी हो, यह अवसर स्कूलकी कसौटीका है ।

मेरा खयाल तो यह है कि जब स्कूलकी स्थापना की गई थी तभी उसमें अन्त्यज बालकोंके दाखिलेका प्रश्न उठा था और व्यवस्थापक मण्डलने यह निश्चय किया था कि इसमें अन्त्यज बालक भी दाखिल किये जा सकते हैं । इस स्कूलके भवन-निर्माणके लिए दिया गया धन भी इतना मानकर ही दिया गया था ।

किन्तु जब उसमें अन्त्यज बालकोंको दाखिल करनेका समय आया है तब अनेक प्रकारके प्रश्न उठने लगे हैं । उसमें अन्त्यज बालकोंके दाखिल किये जानेसे समिति के सदस्य निकल जायें, माँ-बाप अपने बच्चोंको उसमें से निकाल लें और शिक्षक त्याग-पत्र दे जायें -- यह सब हो तो भी जिन शिक्षकों और माता-पिताओंको धर्मप्रिय होगा वे तो धर्मके मार्गसे तिल-भर भी न हटेंगे ।

मेरी अल्पमतिके अनुसार इस अवसरपर धर्म क्या है, इस बारेमें दो मत नहीं हो सकते । मूल प्रतिज्ञाका पालन करना ही धर्म है । ऐसी एक भी नई स्थिति पैदा नहीं हुई है जिससे अब कर्त्तव्यके विषय में कोई शंका उत्पन्न हो सके । इस स्कूलपर

  1. १. देखिए " विदग्ध अथवा अर्धदग्ध ", २०-७-१९२४ ।