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छोटी-छोटी बातोंकी चिन्ता करनेकी आवश्यकता

यदि सब लड़के स्कूल छोड़ दें तो इससे धर्मकी हानि नहीं होती, इससे स्वराज्यको आँच नहीं आती और बढ़वानकी बदनामी नहीं होती । लेकिन यदि दूसरे बच्चोंके चले जानेके भयसे अन्त्यज बालकोंका तिरस्कार हो तो इसमें तीनोंकी बदनामी है ।

मेरे खयालसे अब यह बात सिद्ध करने की कोई जरूरत नहीं है कि अस्पृश्यता महापाप है । कांग्रेसके सदस्योंको और स्वराज्यके प्रेमियोंको इस बारेमें अब कोई शंका नहीं हो सकती ।

मेरी विनम्र प्रार्थना है कि वढ़वानके नागरिक धर्मकी रक्षा करें और व्यवस्थापक और शिक्षकगण अपनी प्रतिज्ञाका पालन । में ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह उनको इतना बल प्रदान करे ।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २७-७-१९२४

२४२. छोटी-छोटी बातोंकी चिन्ता करनेकी आवश्यकता

सूत कातनेकी प्रतिज्ञाके सांगोपांग पालन के लिए छोटीसे-छोटी बातोंका ध्यान रखना भी आवश्यक है । अंग्रेजीमें कहावत है " यदि हम पेनीकी चिन्ता रखेंगे तो पौंड अपनी चिन्ता खुद रख लेगा । " जो पैसे की परवाह नहीं करता वह रुपया कभी नहीं बचा सकता । यह बात तमाम बड़े कामोंपर लागू होती है। जब छोटी बातोंपर ध्यान नहीं दिया जाता तभी बड़े काम बिगड़ते हैं । यदि बड़े यन्त्रमें एक छोटीसी कील लगनेसे रह जाये या ढीली पड़ जाये या उसमें धूलका कण चला जाये तो अकसर देखा गया है कि वह बिगड़ जाता है ।

स्वराज्य तन्त्रको चलाने की हमारी क्षमताका माप हमारी छोटी-छोटी बातोंपर ध्यान देनेकी क्षमतासे होगा । हमें यह क्षमता कातनेकी प्रतिज्ञासे प्राप्त होगी । नित्य नियमसे सूत कतना, उसका एकत्र होना, प्रान्तीय कमेटी में उसका इन्दराज होना, फिर वहाँसे मुख्य कमेटी के पास जाना, वहाँ उसका इन्दराज होना, उसका एक जगह इकट्ठा किया जाना और फिर खादी बनकर उसकी बिक्री -- इन बातोंको लिखना तो आसान है, परन्तु इनको करनेके लिए विभिन्न योग्यता-सम्पन्न बहुतसे कार्यकर्त्ताओं-की जरूरत पड़ेगी ।

प्रत्येक गाँव अपनी निगरानी खुद रखे और गाँवोंकी निगरानी तहसील रखे, तहसीलोंकी जिला और जिलोंकी प्रान्त तथा प्रान्तोंकी खादी बोर्ड रखे ।

जहाँ हर शख्स अपने फर्जको समझता हो और उसे करना जानता हो वहाँ तो सब-कुछ आसान होगा; परन्तु जहाँ जिम्मेवारीका ज्ञान न हो वहाँ प्रान्तीय समितियोंको इन तमाम बातोंकी सँभाल रखनी होगी :

चरखोंका संग्रह करना, उन्हें दुरुस्त करना और दुरुस्त रखवाना होगा ।

तकुए अच्छे और सीधे रहने चाहिए।