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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
चमरख ऐसा होना चाहिए जो मोढ़ियेके सूराखोंमें ठीक बैठ जाये ।
[ अतिरिक्त ] मालका प्रबन्ध रखना चाहिए ।
कपास जमा करके रखनी चाहिए।

कपास ओटकर, रुई धुनकर और उसकी पूनियाँ बनाकर जहाँ जरूरत हो वहाँ पहुँचा देनी चाहिए और बादमें सूत इकट्ठा करवा लेना चाहिए।

जो लोग इससे काम में दिलचस्पी लेंगे उन्हें न तो व्याख्यान झाड़नेकी फुरसत रहेगी और न टीका-टिप्पणियाँ और द्वेष-कलह करनेकी । वे तो अपने काममें ही जुटे रहेंगे।

आदर्श यह है कि हर शख्स अपने लिए चरखेकी व्यवस्था स्वयं करे, कपास जुटाये, उसे ओटे, घुने उसकी पूनियाँ बनाये, सूत काते और फिर सूतपर पानी छिड़के, उसे अटेरनपर उतारे, उसकी गुंडी बनाये, उसपर अपना नाम, नम्बर, सूतका वजन, लम्बाई और अंक लिखे और फिर उसे लपेटकर हर मास प्रान्तीय कमेटीको भेजे ।

परन्तु जबतक तमाम कातनेवाले इस तरह तैयार नहीं हो जाते तबतक प्रान्तीय कमेटी को इनमें से बहुत-सी बातोंकी जिम्मेदारी लेनी होगी और इसके लिए कुछ समय तक एक या अधिक कताई-शिक्षक भी रखने पड़ेंगे।

यदि कातनेवाले बड़ी संख्यामें तैयार हो जायें और हमारे पास उनके लिए काफी चरखे न हों तो इतने चरखे तैयार कराने में कुछ समय लगेगा । फिर इसके लिए काफी रुपयेकी भी जरूरत होगी । कताईके प्रारम्भिक दिनोंमें भाई लक्ष्मीदासने[१] तकली दाखिल की । जब मैंने पहले-पहल वह उनके हाथोंमें देखी तब मैं आनन्दित होकर बहुत हँसा; परन्तु मैंने उसके विषयमें कुछ पूछताछ नहीं की। फिर मैंने वह जुहूमें भाई मथुरादासके हाथ में देखी । मुझे उसपर सूत कातना सीखनेकी इच्छा हुई और मैंने थोड़ा-बहुत सीखा भी । वह उसी समय से मेरे मनमें बस गई है। उसकी कीमत ज्यादासे ज्यादा दो आने पड़ती है; बनाने में भी बहुत वक्त नहीं लगता और साधारण चरखेसे इसपर आधा माल उतरता है । उसकी सुविधाओंकी तो गिनती ही नहीं । उसे आसानीसे रखा जा सकता है। इसका सूत एक-सा और मजबूत होता है । आज भी ब्राह्मण तकलीपर जनेऊके लिए सूत कातते देखे जाते हैं । कितने ही मदरसोंके लड़के मुझसे मिलने आया करते हैं । मेरे सवालोंके जवाब में कुछ लोग कहते हैं कि उनके पास चरखा नहीं है । कुछ कहते हैं कि सिखानेवाला नहीं है । कितने ही मदरसोंमें इतनी जगह नहीं होती कि वहाँ चरखे रखे जा सकें । ऐसी हालत में तकली बड़े कामकी चीज है । जो लोग उससे सूत कातना सीख जाते हैं उन्हें चरखेसे सूत कातनेमें दिक्कत नहीं हो सकती। इसलिए सूत कातनेकी विधि तो तकलीसे ही सीखी जा सकती है । उस सुन्दर तथा सादे यन्त्रसे प्रतिदिन सौ गज सूत कातना आसान है । मैं आशा करता हूँ कि जिन लोगों या संस्थाओंके पास चरखा न हो वे तकलीसे सूत कातने लगेंगे ।

'कंकर-कंकरसे बाँध और बूंद-बूंदसे सागर' इस कहावतमें बड़ा चमत्कार है । अकेली एक बूंद किसी काम नहीं आती । अकेली एक कंकरी बाँध नहीं बाँध सकती ।

  1. १. लक्ष्मीदास आसर ।