पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/४९२

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२४३. मेरी लँगोटी

एक मुसलमान भाई लिखते हैं:[१]

यह पत्र जैसा है, मैंने वैसा ही दिया है । दूसरे मुसलमान भाइयों और कुछ हिन्दू भाइयोंको भी इस भाई जैसी शंका हुई होगी, मैं यही सोचकर इस पत्रका जवाब दे रहा हूँ । मुझे अपने सम्बन्धमें कितने ही पत्र मिलते हैं । लेकिन मैं उनकी चर्चा करना व्यर्थ समझकर 'नवजीवन' में उनका उल्लेख नहीं करता । परन्तु इस पत्र-में कितनी ही भूलें हैं। मैं इनको सामने रखना आवश्यक समझता हूँ। मैं लँगोटी पहनता हूँ, इसका कारण टीकाकारने ठीक ही समझा है । इसे तभी त्यागा जा सकता है, जब हमें स्वराज्य मिल जाये । इसके अतिरिक्त दूसरा रास्ता नहीं है । हिन्दुस्तानी भाई-बहन स्वराज्य प्राप्त करके मुझसे मेरी लँगोटी छुड़वा सकते हैं। ईश्वर मुझे ऐसा कमजोर कर दे कि मेरा काम ज्यादा कपड़ोंके बिना चल ही न सके; तब भी शायद इसे त्यागना पड़ सकता है । मुझे खुद शुरूमें लँगोटी पहनते वक्त यह डर था कि इसपर असभ्यताका आरोप होगा। किन्तु मेरा जीवन जिस दिशामें जा रहा है उसका विचार करते हुए मुझे यही ठीक मालूम हुआ कि में इस असभ्यता के आरोपको बरदाश्त करनेका साहस करूँ। मैं अपने मुसलमान मित्रोंके लिए सदा बहुत कुछ करनेके लिए तैयार रहता हूँ । मुझे उनकी बहुत जरूरत है । मैंने पोशाक बदलनेसे पहले एक मित्रसे इस बारे में चर्चा भी की थी। उन्होंने मेरे इस विचारको पसन्द किया और इससे मुझे बड़ी हिम्मत मिली। मुझे तीन सालोंके अनुभवके बाद इस परिवर्तनपर जरा भी पश्चात्ताप नहीं हुआ है; प्रत्युत अधिकाधिक सन्तोष ही होता जा रहा है ।

मैं गरीब से गरीब हिन्दुस्तानी के जीवनसे अपने जीवनको मिला देना चाहता हूँ । मैं जानता हूँ कि मुझे ईश्वरके दर्शन दूसरे तरीकेसे हो ही नहीं सकते। मुझे उसे प्रत्यक्ष देखना है; इसके लिए में अधीर हो गया हूँ । जबतक मैं गरीबसे गरीब न बन जाऊँ तबतक मुझे उसका साक्षात्कार हो ही नहीं सकता। जबतक उन्हें खाने के लिए पूरा खाना और पहननेके लिए पूरा कपड़ा नहीं मिलता तबतक मुझे खाना और पहनना बुरा लगता है। यदि ईश्वरने मुझे कमजोर न बनाया होता तो मैंने अपने जीवनमें और भी अधिक परिवर्तन किये होते। इन आलोचक महोदयको भारतके नर-कंकालोंकी हालतकी कल्पना भी नहीं हो सकती । इसका अनुभव करनेके लिए तो उन्हें दूरस्थ गाँवोंमें जाना चाहिए और गाँवोंके लोगोंके साथ मिलकर रहना चाहिए ।

ये भाई हिन्दुस्तानके लोगोंके लिए जैसी पोशाक चाहते वैसी पोशाक तो उन्हें दो-चार सौ बरस भी नसीब नहीं हो सकती। उन्हें यह जानना चाहिए कि हिन्दुस्तानके करोड़ों लोगोंको तो मेरे जितना कपड़ा भी नहीं मिलता। वे तो सिर्फ लँगोटी लगा-

  1. १. यहाँ नहीं दिया गया है।