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एक टेक

खुशामद नहीं करनी पड़ती। देशके लिए आधा घंटा देनेमें कोई खास दिक्कत नहीं है, ऐसा प्रत्येक देशप्रेमीको लगना चाहिए ।

लेकिन मुझे एक मित्रने कहा है कि कुछ लोग पहले एक-दो महीने तो नियमानुसार अपना काता हुआ सूत देंगे, लेकिन वे बादमें खुद-ब-खुद थक जायेंगे। मैं आशा करता हूँ कि यह भय निर्मूल सिद्ध होगा। मुझे तो कमसे कम यही उम्मीद है कि जिसने प्रतिज्ञा ली है वह उसका पालन भी अवश्य ही करेगा ।

सुनता हूँ कि गुजरातमें तो खूब होड़ चल रही है। कोई तीन अथवा चार हजार गज सूत देनेकी तो बात ही नहीं सोचता; सबको ज्यादासे - ज्यादा सूत कातनेकी उमंग है । यदि यह उमंग स्थायी हो तो यह स्तुत्य है ।

यदि इस टेकका पालन किया जायेगा तो अभी जो सूत कातनेका उपहास करते हैं वे लोग ही उसका अनुकरण करने लगेंगे ।

यदि इस टेकका पूरी तरह पालन होने लगे तो फिर “गुजरात में महीन सूत नहीं काता जा सकता", "गुजरातमें कताईका काम लाभप्रद नहीं हो सकता"-- ऐसी निराशाभरी बातें सुनाई देनी बन्द हो जायेंगी । तब हम गुजरातमें महीन सूत कातने लगेंगे, इस बारेमें मुझे कोई शंका नहीं है । इतना ही नहीं इससे खादी भी महँगी न रहेगी, सस्ती हो जायेगी। इससे लोगों में अपने सामर्थ्य के सम्बन्धमें जो अविश्वास हो गया है उसकी जगह उनमें विश्वास उत्पन्न हो जायेगा ।

गुजरातने असहयोगमें पहल की थी । वही उसकी पूर्णाहुति भी कर सकता है । हमें एक भय से बचना है। असहयोगपर लगाये गये आरोपोंमें एक आरोप गर्वका भी है । ऐसा माना जाता है कि असहयोगियोंको सहयोगियोंके प्रति गाली-गलौजकी भाषाका व्यवहार करनेका इजारा मिल गया है । सहकारी कहते हैं कि असहयोगियों-के मन में यह बात बैठ गई है कि असहयोगी हो गये तो मानों सर्वोपरि हो गये । यह आरोप मिथ्या है, हमें ऐसा सिद्ध करना चाहिए। कातनेवाले लोग न कातने-वालोंकी निन्दा न करें, बल्कि वे उन्हें अपने नम्र व्यवहारसे जीतें । कातनेवाले केवल कांग्रेसके साथ सम्बन्ध रखनेवाले लोगोंको ही कातनेके लिए आमन्त्रित न करें, वरन् सहयोगियोंसे भी सूत कातनेकी विनती करें। यदि वे वकीलोंसे उचित प्रकारसे विनती करेंगे तो सम्भव है कि वे अपना आधा घंटा इस कार्यके लिए दें। दूसरे भी इतना तो अवश्य करें । जिन्हें खादीमें श्रद्धा न हो वे भी आधा घंटा सूत कातनेसे इनकार न करें । शायद यह बात सभी मानेंगे कि सूत कातनेसे देशको कोई नुकसान नहीं होगा ।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २७-७-१९२४
२४-३०