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पत्र : मुहम्मद अलीको

सविनय अवज्ञा करनेकी जरूरत नहीं है, सामूहिक सविनय अवज्ञा भी हम न करें, लेकिन कोई एक परिस्थिति सामने आ जाये और हमारा पानी परखना चाहे तो हमें उसका मुकाबला करना ही है। क्या यह ठीक नहीं है ? संघर्ष कैसे किया जाये, यह तो परिस्थितियोंके मोड़के अनुसार तुम्हीं निश्चित करोगे ।

हृदयसे तुम्हरा,
मो० क० गांधी

[ पुनश्च: ]

मेरे स्वास्थ्यकी चिन्ता मत करो । स्वास्थ्य ठीक ही है और मेरा काम चल जाता है । चरखा सुधार लेना तो तुम्हें आ ही जाना चाहिए । बढ़िया हत्येके लिए सिर्फ उसमें लोहा लगा देना-भर काफी है। लकड़ीका लोहेसे ठीक मेल नहीं बैठता; वह टूट जाती है । इसलिए यदि छेदमें लोहेका छल्ला बैठा दिया जाये तो हत्था ठीक काम देने लगेगा। याद रखो, सिर्फ कीलोंसे काम नहीं चलेगा । हत्थेका कोई भी हिस्सा चरखेमें लगी हुई लोहेकी धुरीसे रगड़ न खाये, इसका ध्यान रखना होगा ।

तुम्हरा,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजी से ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

२४७. पत्र : मुहम्मद अलीको

साबरमती
२७ जुलाई, १९२४

प्रिय भाई,

आपका काम बड़ा मुश्किल काम है । मैं अकसर सोचता हूँ कि स्वास्थ्यकी परवाह न करके दिल्ली जा पहुँचूँ । अगर आप भी ऐसा ही सोचते हों तो आपके कहने-भरकी देर है । आपको मेरे दोनों तार[१] कल मिल गये होंगे। मैं तो चाहता हूँ कि अगर हो सके तो आप मामलेकी पूरी तहकीकात करके अपनी राय प्रकाशित कर दें। मैं जानता हूँ, आप इरनेवाले आदमी नहीं हैं । दोषी पाये जानेपर आप न हिन्दुओंकी मुरौवत करें, न मुसलमानोंकी। सभी पक्षोंकी बात धीरजके साथ सुनिए, सभीको सार्वजनिक रूपसे अपनी बात कहनेको आमन्त्रित कीजिए। उनसे लिखित बयान लीजिए ।

  1. १. एक ही उपलब्ध है; देखिए " तार : मुहम्मद अलीको ”,