मैं कोशिश कर रहा हूँ कि आनन्दानन्द अपना काम जल्दी पूरा कर ले। अभी वह अहमदाबाद और बम्बईके बीच चक्कर लगा रहा है। आपकी मशीनोंकी जगह उसे मशीनें जुटानी हैं। इन भारी भरकम चीजोंको एक स्थानसे दूसरे स्थानपर ले जाने में समय लगता ही है। अभी वह बम्बई में सौदेकी बातचीत कर रहा है। उससे मैं शायद कल मिलूंगा । आपने जैसे ही मुझसे इस बातकी चर्चा की, मैंने उसे तुरन्त लिख दिया कि वह समय-समयपर आपको पत्र लिखकर सूचित करता रहे कि क्या- कुछ हो रहा है।
पण्डित मोतीलालजीने जो प्रश्न आपसे किये थे उसकी एक प्रति मुझे भी भेजी है, उन्होंने शिकायत की है कि आपने अबतक उन प्रश्नोंके उत्तर नहीं दिये हैं । मुझे तो पत्र कल ही मिला। उन्होंने लिखा है कि उनके सामान्य प्रश्नोंके उत्तर मैं भी दूँ। मैंने उत्तर भेज दिये हैं। अगर आपने अबतक उत्तर न भेजें हों तो कृपया भेज दीजिए। हमारी ताकत तो हमारा काम होना चाहिए; दूसरा कुछ नहीं।
आपका,
मो० क० गांधी
दिल्ली
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
- सौजन्य : नारायण देसाई
२४८. पत्र : बाबू भगवानदासको
२७ जुलाई, १९२४
पत्रके लिए धन्यवाद । विश्वास कीजिए मैं बराबर सोचता रहता हूँ कि इस विवादको कैसे खत्म किया जाये। मैं जानता हूँ कि दोनों नीतियोंके लिए गुंजाइश है । आपने बहुत ठीक ही कहा है कि इन दोनों नीतियों को पनडुब्बी और विमानकी तरह समझिए।[१] दोनोंके कार्य क्षेत्र अलग-अलग होने चाहिए। तब वे नीतियाँ एक-दूसरेसे टकरायेंगी नहीं, बल्कि परस्पर मदद पहुँचायेंगी । मैं कांग्रेससे निकल आनेका कोई ऐसा उपाय सोच रहा हूँ कि निकल भी आऊँ और उसकी ज्यादा बात भी न हो । श्री तिलकके समयमें मुझे अपने तरीकोंसे काम करनेमें कोई कठिनाई नहीं
- ↑ १. देखिए “ लोकमान्यकी पुण्य तिथि ", ३१-७-१९२४ ।