पड़ा है। मुझे यह कहते पीड़ा होती है कि कुछ अपवादोंको छोड़कर आमतौरपर ईसाई प्रचारकोंने सामूहिक रूपसे उस शासन प्रणालीको सक्रिय सहायता पहुँचाई है जिसने पृथ्वीपर भद्रतम तथा सभ्यतम गिने जानेवाले लोगोंको कंगाल बनाया है, हतवीर्य किया है तथा नैतिक दृष्टिसे भी गिराया है। मुझे इतना और कहना है कि मैं पृथ्वीपर एक ही धर्मके होने या रह जानेकी बातमें विश्वास नहीं करता। इसलिए मैं सब धर्मो में मिलती-जुलती बातें ढूँढ़ निकालने तथा एक-दूसरेके प्रति सहनशीलता उत्पन्न करनेका प्रयत्न कर रहा हूँ ।
हृदय-परिवर्तन
यह उपर्युक्त उदाहरणका एक प्रत्युदाहरण है। एक अंग्रेज पत्र लेखक लिखते हैं:
मैं १९१९ की घटनाओंके समय भारतीय सेनाको एक टुकड़ीमें था और मैं खूब अच्छी तरह जानता हूँ कि सत्यके प्रति अन्धा होना कितना सरल है, तथा अंग्रेजोंके लिए अपने बहु संकुचित दृष्टिकोणको उदार बनाना कितना कठिन है । मैंने सेनाकी नौकरी छोड़ दी और में विश्वविद्यालय में चला गया । जब मैं विश्वविद्यालय में था तब मेरी नियुक्ति भारतीय नागरिक सेवानें कर दी गई। अब मेरी समझ में आ गया है कि वह मेरा सौभाग्य था जिसने मुझे उस पद से त्यागपत्र देनेके लिए प्रेरित किया था। अभी कुछ दिन हुए मैंने स्वयं विश्वविद्यालयके ऐकान्तिक जीवनसे निकलकर स्वयं औद्योगीकरण, भौतिक-वाद और यन्त्रोंसे उत्पन्न विभीषिका देखी है।
मैं भारत के लिए किये जानेवाले आपके महान् कार्यको ध्यानपूर्वक देखता आ रहा हूँ। यह आध्यात्मिक सत्यको लौकिक क्षेत्रमें लागू करनेका एक अनोखा उदाहरण है। ज्यों-ज्यों मेरी दृष्टिमें इंग्लैंडके दो स्वरूप साफ होते गये मेरा क्षोभ बढ़ता चला गया। मैं आशा और विश्वास करता हूँ कि आप भारतको भौतिकवादी सभ्यताके अभिशापसे मुक्त करके विशाल अंग्रेजी जन-समुदायको भी उसके दूषित परिणामोंसे मुक्त करेंगे ।
भारतीय आन्दोलनके इस पहलूसे, वस्तुतः आप भलीभांति परिचित हैं ।
किन्तु मेरा खयाल है कि आप निराशाओं और कष्टोंस भरे अपने जीवनमें, १९१९ में भारतमें रहे हुए एक 'आंग्ल भारतीय' द्वारा की गई अपने कार्यकी इस सराहनाको अस्वीकार नहीं करेंगे ।
पाठ्य पुस्तकोंकी जन्ती
संयुक्त प्रान्तकी सरकारने इस मासकी १५ तारीखको निम्नलिखित विज्ञप्ति जारी की है :
१८९८ के पाँचवें कानूनके खण्ड ९९ क में दिये गये अधिकारोंके अनुसार, सपरिषद् गवर्नर घोषित करते हैं कि पण्डित रामदास गौड़ द्वारा लिखित और बैजनाथ केड़िया, हिन्दी पुस्तक एजेंसी, १२६ हैरीसन रोड, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित और वणिक प्रेस कलकत्तामें मुद्रित हिन्दी पाठ्य पुस्तक सं० ३, ४,