पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८५
टिप्पणियाँ

५ और ६ की तमाम प्रतियाँ सम्राट्की ओरसे जब्त कर ली गई हैं। इसके सिवा इन पाठ्य पुस्तकों की किसी अन्य स्थानपर छपी दूसरी तमाम प्रतियाँ या उनमें से ली गई सामग्री भी जब्त कर ली गई हैं, क्योंकि स्थानिक सरकारकी राय है कि इन पाठ्य पुस्तकों में राजद्रोहात्मक सामग्री है, जिसका प्रकाशित करना भारतीय दण्ड विधान के खण्ड १२४ क के अनुसार दण्डनीय है।

ये पाठ्यपुस्तकें कोई तीन सालसे जनताके सामने हैं । राष्ट्रीय शालाओं में उनका विस्तृत उपयोग होता है । वे नगरपालिकाओंकी शालाओंमें भी चलती रही हैं। इसलिए प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीने उचित ही आचार्य रामदास गौड़को इसपर बधाई दी है, इन पुस्तकोंको निर्दोष बताया है और इस सरकारी हुक्मके होते हुए भी उनको बनाये रखनेकी सिफारिश की है। इससे लोगोंके इस भ्रमका निराकरण हो जाता है कि अब सरकारने असहयोगियोंके खिलाफ मनमानी कार्रवाई करनेकी नीति छोड़ दी है । सरकारका कथन है कि इन पुस्तकोंमें ऐसे पाठ हैं जिनसे भारतीय दण्ड विधानका खण्ड १२४ क भंग होता है । वह लेखकपर मुकदमा चलाकर उन्हें सजा दिला सकती थी। तभी उसका इन पुस्तकोंको जब्त करना न्यायोचित भी कहला सकता था। मैंने इन पाठ्य पुस्तकोंके सभी पाठ पढ़ लिये हैं; मुझे तो वे सरकारी दृष्टिकोणसे भी बिलकुल निरापद मालूम होती हैं । सरकारका लोगोंके प्रति कमसे कम इतना कर्त्तव्य तो था ही कि वह यह बता देती कि इन पुस्तकोंमें आपत्तिजनक सामग्री क्या है, जिससे लोग इतना मानकर भी कि सरकार मनमाने अधिकारका निस्स-न्देह उपयोग कर सकती है, इस बातपर विचार कर सकते कि सरकारका यह आदेश न्यायपूर्ण है या अन्यायपूर्ण । परन्तु मौजूदा हालतमें तो इस नतीजे पर पहुँचे बिना नहीं रहा जा सकता कि सरकार पाठ्य पुस्तकोंकी बढ़ती हुई लोकप्रियताको पसन्द नहीं करती और अनुचित रीतिसे अपने उन प्रतिपालित लोगोंको फायदा पहुँचाना चाहती है जिनकी पाठ्य पुस्तकें आचार्य गौड़की पाठ्य पुस्तकोंकी प्रतियोगितामें पीछे रह गई होंगी । यदि पुस्तकें सचमुच राजद्रोहात्मक होतीं तो उसके लम्बे-चौड़े खुफिया विभागकी ओरसे यह बात जरूर उसके सामने पेश कर दी गई होती। इतने दिनोंके बाद पुस्तकोंका जब्त किया जाना मेरे इस निष्कर्षकी पुष्टि करता है । मैं संयुक्त प्रान्तंकी सरकारको आमन्त्रित करता हूँ कि वह अपने इस फैसले के सम्पूर्ण कारण सर्वसाधारण के सामने पेश करे। मुझे यह जानकर खुशी होगी कि मैंने जो निष्कर्ष निकाला है वह ठीक न हो। मैं समिति के सभापतिको भी सलाह देता हूँ कि वे सरकारसे इसके कारण पूछें और यदि समितिको सरकारका फैसला ठीक दिखाई दे तो मैं आचार्य रामदास गौड़को सलाह दूंगा कि वे उन पुस्तकों में आवश्यक संशोधन कर दें या उनकी बिक्री बन्द करा दें ।

हिन्दू-मुस्लिम एकता

कोई भी पाठक, जिसने दिल्लीकी हालकी घटनाओंपर प्रकाशित हकीम अज-मल खाँका वक्तव्य पढ़ा है उसमें छिपे गहरे सन्तापको महसूस किये बिना नहीं रह सकता। मुझे उसका कमसे कम एक अनुच्छेद यहाँपर अवश्य देना चाहिए :