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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिल्लीके हालके उपद्रवोंके समय हुई सारी घटनाओंमें सबसे ज्यादा लज्जा-जनक और हृदयविदारक घटनाएँ हैं औरतोंपर किये गये अन्यायपूर्ण और कायरतापूर्ण आक्रमण । जहाँतक मुझे मालूम हुआ है हिन्दुओंने एक मुसलमान स्त्रीके साथ दुर्व्यवहार किया है; परन्तु इससे भी ज्यादा बुरी बात तो यह है कि १५ तारीख उपद्रवोंमें कुछ ऐसे लोग, जो दीने इस्लामके पुजारी होनेका दावा रखते हैं, सिर्फ हिन्दू मन्दिरपर आक्रमण करके और मूर्तियाँ तोड़-फोड़-कर ही सन्तुष्ट नहीं हुए बल्कि उन्होंने औरतों और बच्चोंपर भी कायरता-पूर्वक आक्रमण किया। स्त्री-जातिकी प्रतिष्ठा और पवित्रताकी ओर अपने हम-मजहब लोगों द्वारा की गई निर्दयतापूर्ण और असभ्यतापूर्ण अवज्ञाकी कल्पना मात्र-से मुझे घोर सन्ताप होता है और मेरी रूह काँप उठती है। ऐसे गुनहगारोंकी जितनी भी निन्दा की जाये थोड़ी है । में तमाम सच्चे मुसलमानोंसे अपील करता हूँ कि वे दिल खोलकर बिना आगा-पीछा किये इस अनाचारकी निन्दा करें। में जमीयत-उल-उलेमा और खिलाफत समितियोंको दावत देता हूँ कि वे उठ खड़ी हों और इस्लामकी उदातसे उदात्त भावनाओंका उपयोग ऐसे जंगली और गैरकानूनी कामोंकी निन्दा करने में और आयन्दा उनकी पुनरावृत्ति न होने देने में करें। सच्चे मुसलमानकी हैसियत से ऐसी करतूतोंको बिलकुल नामुमकिन बना देना हमारा नैतिक कर्तव्य है। अगर हम इसमें कामयाब न हुए तो कौमी आजादी और स्वराज्य प्राप्त करनेकी कोशिशों में हमारी पराजय उचित ही होगी ।

एक सज्जनने अपने पत्र में मुझे इस बातपर फटकारा है कि हकीमजीने जिन हमलोंका जिक्र किया है मैंने अपने वक्तव्यमें उनपर कुछ नहीं कहा है । मैंने अपनी टिप्पणी उपद्रवोंकी बिलकुल पहली खबरके आधारपर लिखी थी । उसमें इन हमलों-का कोई जिक्र नहीं था। उसके बाद परिस्थिति बहुत बिगड़ गई। यह खबर इतनी गम्भीर थी कि उसपर केवल सनसनीखेज तारोंके आधारपर खुली टीका नहीं की जा सकती थी। इसलिए मैंने दिल्लीके मित्रोंसे चिठ्ठी-पत्री शुरू की; परन्तु आज में कोई प्रभावकारी आलोचना कर सकने की स्थिति में नहीं हूँ ।खुशकिस्मती से मौलाना मुहम्मद अली इस समय दिल्ली में हैं। वे तहकीकात कर रहे हैं और मैंने सुझाव दिया है कि यदि सम्भव हो तो उन्हें कांग्रेसके अध्यक्षकी हैसियतसे अपनी प्राथमिक जांच-पड़ताल-की रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिए।[१] इस मामलेमें मुझे अपने कर्त्तव्यका पूरा खयाल है। इस समय मुझे मौलाना साहबके पास होना चाहिए था। लेकिन डाक्टरोंकी सलाहसे मैंने वहाँ जाना स्थगित कर रखा है। अबतक जितना पथ्य-परहेज करने पर जोर दिया जाता है वह सब शायद जरूरी नहीं है; क्योंकि यद्यपि में बाहर आता-जाता नहीं तथापि बहुत सा काम तो करता ही हूँ । लेकिन यथासम्भव स्वास्थ्य-

  1. १. देखिए " पत्र : मुहम्मद अलीको ", २७-७-१९२४ ।