पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५१७

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टिप्पणियाँ

को जोखिमसे बचाना चाहता हूँ। इस अवसरपर मित्रोंका मुझे मेरे कर्तव्यकी याद दिलाना ठीक है; लेकिन मैं उन्हें यकीन दिलाता हूँ कि मैंने अपनेको पूरी तरह मौलाना मुहम्मद अलीकी इच्छापर छोड़ रखा है। मैंने उनसे कह दिया है कि यदि वे मुझे तत्काल दिल्ली बुलाना जरूरी समझें तो वे मेरी तन्दुरुस्तीका ख़याल न करें । और यों भी में हर हालतमें जल्दी ही दिल्ली जानेकी तैयारी कर रहा हूँ, परन्तु अगर मौलाना मुहम्मद अली मेरा जल्दी दिल्ली आना जरूरी न समझते हों तो में अगस्त के अन्ततक सफर नहीं करना चाहता । अहमदाबादमें मेरी तन्दुरुस्ती कुछ बिगड़ जाने के कारण श्री विट्ठलभाई पटेलसे अनुरोध किया गया है[१] कि वे बम्बई नगर निगम की ओरसे मुझे दिये जानेवाले मानपत्रकी तारीख अगस्त के अन्तमें रखें । परन्तु यदि जरूरत हुई तो मैं मानपत्रके लिए बम्बई जानेसे पहले दिल्ली जाने में आगा-पीछा नहीं करूँगा ।

पक्षपात या न्याय

मैं देखता हूँ कि कलकत्ता नगर निगमके मुख्य कार्यपालक अधिकारीकी पर्याप्त रूपमें प्रतिकूल आलोचना की गई है, क्योंकि उन्होंने ३३ में से २५ नियुक्तियाँ मुसलमानोंकी की हैं। मैंने आलोचनाएँ स्वयं नहीं पढ़ी, किन्तु मैंने मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा दिया गया वक्तव्य पढ़ा है। मेरी विनम्र रायमें उनका यह काम श्लाघ्य है । मुझे इसमें सन्देह नहीं कि अभीतक यूरोपीयों अथवा भारतीयोंने निष्पक्ष भावसे नियुक्तियाँ नहीं की हैं। इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि अनेक अवसरोंपर हिन्दुओंने प्रभाव डालकर अपने पक्षमें निर्णय कराया है। इसलिए अब उन्हें यह शोभा नहीं देता कि वे बहुत-सी जगहें मुसलमानोंको दे देनेके कारण झगड़ा करें। यह आरोप होनेपर भी कि नियुक्ति-योंके पीछे दलबन्दीका हेतु है, यदि नियुक्तियाँ अन्यथा न्यायसंगत हैं तो इसमें अनैतिक अथवा निन्दनीय कुछ नहीं है । इंग्लैंडमें दलके हितकी दृष्टिसे सदा ऐसी नियुक्तियाँ की जाती हैं; यद्यपि प्रायः यह सावधानी बरती जाती है कि उससे कार्यकर्त्ताओंकी कार्यकुशलताका मान कम न हो जाये । व्यक्तिगत रूपसे में तो यह चाहता हूँ कि नियुक्तियाँ योग्यतम व्यक्तियोंकी होनी चाहिए और उसमें दल विशेषका विचार नहीं किया जाना चाहिए; इसीलिए नियुक्तियोंके लिए एक निर्दलीय स्थायी निकायका होना उचित है । किन्तु यदि हिन्दू भारतको स्वतन्त्र देखना चाहते हैं तो उन्हें अपने मुसलमान और अन्य भाइयोंकी खातिर त्याग करनेके लिए खुशी-खुशी तैयार रहना चाहिए। में मुख्य कार्यपालक अधिकारीके निम्न वक्तव्यका हृदयसे समर्थन कर सकता हूँ । वे कहते हैं :

जब हजारों शिक्षित नौजवान बेकार हों तथा करीब-करीब भूखों मर रहे हों, और रिक्त स्थान बहुत सीमित हों, तब किसी भी मनुष्यके लिए सभीको प्रसन्न करना सम्भव नहीं है । में कुछ भी करूँ, बेकार लोगोंका अधिकांश भाग निश्चय ही पूर्ववत असन्तुष्ट रहेगा। इस समस्याका एकमात्र हल है, कोई

  1. १. देखिए "पत्र : विटुलभाई पटेलको”, २४-७-१९२४ ।