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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुनर सिखानेको व्यवस्था करना, और मेरी राय में, निगम इस दिशा में बहुत-कुछ कर सकता है।

हमें नौकरियोंके बिना काम चला सकना सीखना चाहिए। नौकरियाँ तो बहुत ही कम लोगोंको मिल सकती हैं। शिक्षाको केवल बाबूगिरीकी शिक्षा बनकर नहीं रहना है। कोई स्नातक, कारीगर अथवा साग-भाजी या खद्दरकी फेरी क्यों नहीं लगा सकता ?

एक मुस्लिम खादी समिति

अहमदाबादमें अभी-अभी स्थापित, मुस्लिम खादी समिति के मन्त्री श्री एस० एच० उरेजीने मेरे पास निम्न समाचार प्रकाशनके लिए भेजा है :

कानपुर के हजरत मौलाना आजाद सोबानी साहब कुछ उत्साही मुसल- मानोंकी सहायता से इस मासको १५ तारीखको अहमदाबादमें मुस्लिम खादी समितिका संगठन करने में सफल हुए हैं। इसका स्पष्ट उद्देश्य मुसलमानोंमें खद्दरका व्यापक प्रचार करना है। समिति में निम्नलिखित सज्जन हैं :

अध्यक्ष--हकीम सैयद अहमद साहब देहलवी; उपाध्यक्ष -- हकीम समीर साहब सिद्दीकी; मन्त्री -- सैयद हुसैन उरेजी; कोषाध्यक्ष -- सेठ मुहम्मदभाई राजाभाई शेख । सदस्य -- मौलवी सैयद सज्जाद हुसैन साहब; हकीम रहीमुल्ला साहब अजमेरी; मुंशी मंजरअली साहब; सेठ नूरमुहम्मद मुहम्मदभाई मंसूरी साहब सेठ पीरभाई आदमजी मोदी साहब सेठ अब्दुर्रहीम अब्दुल करीम साहब, मौलाना शराफ साहब देहलवी ।

मैं अपनी सीमाका अतिक्रमण करके इस समितिका विज्ञापन कर रहा हूँ, क्योंकि सामान्यतः मैं इस प्रकार के विवरण प्रकाशित नहीं करता । मैंने कटु अनुभवके बाद जाना है कि ऐसी समितियाँ घास-पातके समान शीघ्रतासे उत्पन्न होती हैं और फिर शीघ्रतासे नष्ट भी हो जाती हैं । इनका अस्तित्व प्रायः कागजपर ही रहता है । किन्तु मैं इस समिति के पक्ष में अपवाद स्वरूप यह आशा करता रहा हूँ कि यह अपने संस्थापक मौलाना आजाद सोबानीकी प्रतिष्ठाके अनुरूप सिद्ध होगी। मैं ऐसे बहुत कम मुस्लिम संगठनों को जानता हूँ जो विशेष रूपसे खादीके काममें संलग्न हों । न बहुतसे मुसलमान ही ऐसे हैं जो इस अत्यन्त आवश्यक राष्ट्रीय कार्यमें सक्रिय रुचि रखते हों । बल्कि एक मित्रने मुझसे कहा कि अहमदाबादमें बकरीद के समय खादी पहने हुए मुसलमान अँगुलियोंपर गिने जा सकते थे। वे देशी मिलोंका कपड़ा भी नहीं पहने हुए थे । विदेशी-ही-विदेशी कपड़ा दीख पड़ रहा था। मैं आशा करता हूँ कि इस समिति के प्रयत्नोंसे यह स्थिति बदल जायेगी। मैं यह भी आशा करता हूँ कि इसके सब सदस्य सूत कातते और खादी बुनते होंगे ।

कतैयोंसे

सत्याग्रह आश्रमके व्यवस्थापक मुझसे कहते हैं कि पूनियों, तकुओं, चमरखों, चरखों, धुनकियों और चर्खियोंकी माँगकी बाढ़ सी आ रही है । अ० भा० कांग्रेस के