पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५१९

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टिप्पणियाँ

प्रस्तावोंकी यह प्रतिक्रिया एक शुभ चिह्न है । परन्तु यहाँ एक छोटी-सी चेतावनी दे देना जरूरी है। जो लोग इस काम में नये ही आये हैं उन्हें, स्वभावतः सहायता और मार्गदर्शनकी जरूरत होगी। लेकिन व्यवस्थापकों और सूत कातनेवालोंको यह समझ लेना चाहिए कि अगर हर सूत कातनेवालेको कहीं दूरसे पूनियाँ उपलब्ध करनी पड़ें तो सारे देशमें कताईका संगठन करना नामुमकिनहो जायेगा । पूनियाँ बहुत नरम होती हैं और एक जगह से दूसरी जगह भेजने में खराब हो जाती हैं । यदि वे धातुके डिब्बोंमें भरकर भेजी जायें तो वे बिना दबे जा सकती हैं; परन्तु इसमें पूनीकी कीमत से भी ज्यादा खर्च बैठ जायेगा । इसलिए सबसे अच्छा तो यह है कि लोग सूत कातने के साथ-साथ रुई धुनना भी सीख लें । जहाँ यह मुमकिन न हो वहाँ ३० या उससे कम सदस्योंके कताई मण्डल कायम किये जायें। मण्डलका एक सदस्य जो पूरे समय काम करनेवाला हो, केवल रुई धुनने और पूनियाँ बनाने का काम करे किन्तु वह आधा घंटा सूत कातनेमें भी अवश्य लगाये । यदि चरखे, तकुए आदि भी किसी एक ही जगह से मँगवाने पड़ें तो भी कताईको सफलतापूर्वक चलाना नामुमकिन है। हर प्रान्तीय कमेटीसे संलग्न एक गोदाम होना चाहिए जहाँ कताई और मरम्मत सम्बन्धी तमाम सरंजाम मिल जाये । चरखेका पार्सल बनाना बहुत मुश्किल होता है और रेल-भाड़ा बहुत पड़ जाता है। यदि अच्छा नमूना सामने हो तो एक मामूली बढ़ई भी अच्छा चरखा बना सकता है। किसी संस्थाको सुचारु रूपसे चलाने के लिए हजारों छोटी-मोटी बातोंपर विचार करना पड़ता है । और इसीलिए अगर सम्भव हो तो मैं कांग्रेसको एक ऐसा कारखाना और खादी भण्डार बना देना चाहता हूँ जिसमें कताईसे सम्बन्धित तमाम सामग्री मिले और जहाँ खादीकी बिक्री भी हो । हमें अपने आन्तरिक प्रयत्नों द्वारा विदेशी कपड़ेका सम्पूर्ण बहिष्कार करनेके लिए बहुत सोच-विचार और उससे भी अधिक परिश्रम करना पड़ेगा । एक आदमी या एक ताल्लुकेके पूरे तौरपर खादीपोश हो जानेसे चाहे स्वराज्य न मिले किन्तु सारे देशके ऐसा करनेसे तो स्वराज्य अवश्य मिलेगा । यही सफल बहिष्कारका अर्थ है । यदि हम अपनी कल्पनाशक्तिको थोड़ा भी दौड़ायें तो खादी-आन्दोलनका पूरा स्वरूप सामने आ जायेगा और हमारी सब शंकाएँ दूर हो जायेंगी । खादीकी बात लोगोंको न जँचे यह दूसरी बात है । परन्तु यह भी तबतक नहीं कहा जा सकता जबतक हम उसके लिए सचाईसे पूरी कोशिश न करें; किन्तु ऐसी कोशिश हार्दिक श्रद्धाके ही बलपर की जा सकती है।

प्रश्नकर्त्तास

नहीं, यह सच नहीं है कि मैंने अपना भोजन इसलिए कम कर दिया था कि देश सूत नहीं कात रहा है । मैंने भोजन कम किया था, मानसिक शक्ति और स्वास्थ्य-की संरक्षा के लिए। मैं अब फिर तीन बार भोजन करने लगा हूँ और उसमें भाकरी[१] शुरू कर दी है। किन्तु जब 'स्यामके जुड़वाँ भाइयों'ने अहमदाबादसे रवाना होनेसे पहले

  1. १. प्रायः बाजरे अथवा ज्वारकी बनी मोटी रोटी।