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२६४. तार : चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

[ ३१ जुलाई, १९२४ या उसके पश्चात् ][१]

मेरे विचारसे जो क्षति हुई है उसे पूरा करना हमारी सामर्थ्य से बाहर है । हम अपेक्षाकृत बड़ी संस्थाओंको व्यक्तिगत सेवा देकर उनका हाथ बँटायें ।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ९००७) की फोटो नकलसे ।

२६५. सन्देश : 'वन्देमातरम्' को

[ १ अगस्त, १९२४ ][२]

मैं चाहता हूँ कि 'वन्देमातरम्' के पाठक लोकमान्यकी पुण्यतिथिके अवसरपर उनके जीवन के बारेमें मनन करें। तब वे अनुभव करेंगे कि वे हमसे यह अपेक्षा करते थे कि हमारे अन्दर देशके लिए निःस्वार्थ भक्तिभाव हो । जबतक भारत स्वतन्त्र नहीं हो जाता तबतक क्या वे नैष्ठिक नियमितता के साथ रोजाना सूत कातनेके रूपमें आधा घंटा भी शरीर श्रम करनेका कष्ट उठायेंगे ?

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल,५-८-१९२४
  1. १. यह चक्रवर्ती राजगोपालाचारीके २९ जुलाईके तारके उत्तर में भेजा गया था। श्री राजगोपाला-चारीका तार गांधीजीको ३१ जुलाईको मिला था। वह इस प्रकार था : “बाढ़ के कारण भयंकर बरबादी । बताइए कि हम कांग्रेस-कोषसे सहायता कार्य करें या नहीं ।" ऐसा ही एक तार गांधीजीने श्रीनिवास आयंगारके ३० जुलाईके तारके उत्तरमें भी भेजा था।
  2. २. यह सन्देश लोकमान्य तिलककी पुण्य तिथिपर अर्थात् १ अगस्त, १९२४ को भेजा गया था ।