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भाषण : शिक्षा परिषद्

बालक ब्राह्मणों और वैश्योंके नहीं, अन्त्यजोंके हैं । जो काम यह अन्त्यज शिक्षक कर सका है, उसे क्या मैं और आप नहीं कर सकते ? क्या हमें अन्त्यज लड़के भी न मिलेंगे ? यदि वे एक जगह न मिलें तो हम दूसरी जगह आजमाइश करेंगे। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हमें प्राथमिक शिक्षाके कामपर बहुत ध्यान देना ही चाहिए ।

मैंने सुना है कि अभिभावकगण हमारे शिक्षाक्रमसे ऊब गये हैं । विद्यार्थियोंको मातृभाषा द्वारा शिक्षा देना उन्हें नापसन्द है । यह सुनकर मुझे पहले हँसी आई परन्तु पीछे दुःख हुआ । जब मनुष्य के मनमें दुःखका दावानल सुलग रहा होता है तब वह रो नहीं पाता, हँसता है । मैंने मनमें कहा -- यह कैसी अधोगति है ! माँ-बाप सोचते हैं, लड़के अच्छी अंग्रेजी नहीं बोल सकेंगे; गुजराती खराब बोलेंगे, यह उन्हें नहीं खलता। वे यह क्यों नहीं सोचते कि यदि वे गुजराती पढ़ेंगे तो घरमें शिक्षाका कुछ प्रवेश करायेंगे ? मैं खुद ज्यामिति, बीजगणित और अंकगणितकी परिभाषाएँ नहीं जानता । यदि मुझसे 'सर्कल' शब्दका गुजराती समानार्थक शब्द पूछा जाये तो मैं सोचकर ही बता सकूंगा। मैं त्रिभुजोंके भिन्न-भिन्न अंग्रेजी नाम जानता हूँ किन्तु मैं उनमें से एकका भी गुजराती नाम नहीं जानता । यह कैसी दुरवस्था है। मैं ऐसे अभिभावकोंसे कहूँगा, अपने लड़के आप स्वयं सँभालें । क्या मैं उन्हें अंग्रेजीमें शिक्षा दूं और गुजराती शब्द दूसरोंसे पूछने जाऊँ ? क्या मैं इसके लिए राष्ट्रीय शालाएँ खोलूं और उनके लिए चन्दा जमा करूँ ? इसकी बजाय तो मैं यह पसन्द करूँगा कि खुद घर बैठ जाऊँ । सारी परिभाषाएँ सीखलूं और फिर धारा प्रवाह गुजराती बोलूं । मैंने किसी भी अंग्रेज विद्वान्‌को अपनी भाषाके शब्द ढूंढ़ते नहीं देखा । स्पर्ज्जुन नामक एक अंग्रेज था । वह विद्वान् तो बहुत न था परन्तु जब अंग्रेजी बोलने लगता तब मानो प्रवाह बहता । वह जलसेना सम्बन्धी छोटेसे-छोटे शब्दोंकी भरभार करके सबको दंग कर देता । यदि मैं अपने यहाँके परम विद्वान् श्री नरसिंहराव[१] और श्री आनन्दशंकरके[२] पास ऐसी समस्याएँ लेकर जाऊँ और बदनीयती से उनकी परीक्षा लूँ तो उन्हें तुरन्त फेल कर दूँ । जहाँ ऐसी दरिद्रता है, वहाँ मुझसे अंग्रेजीकी मार्फत शिक्षा देनेके लिए कहा जाये तो मैं इनकार ही करूँगा । मैं कबूल करता हूँ कि मातृभाषा द्वारा शिक्षा देना असहयोगका अंग नहीं है। यदि किसी बच्चेके अभिभावक कहें, आप हमारे लड़केको अच्छी अंग्रेजी सिखा दें और फिर अगर कताई-संगीत आदि सिखाना चाहें तो वह भी सिखायें तो मैं यह सौदा कर लूँगा । मैं उसे चार घंटे अंग्रेजी पढ़ाऊँ और उससे चार घंटे चरखा चलवाऊँ । अंग्रेजीके साथ जितनी गुजराती पढ़ा सकूँगा उतनी गुजराती भी पढ़ा दूँगा। मैं इस हदतक अभिभावकोंको धोखा ही दूंगा; क्योंकि मेरे मनमें कुछ दुराव तो है ही। एम० ए० पास भी गलत अंग्रेजी लिखते हैं और गलत हिज्जे करते हैं ।

स्त्री-शिक्षा के बारेमें मुझे बहुत कुछ कहना था । परन्तु यह विषय गम्भीर है । एक लिहाज से इस संग्रामके साथ इसका सम्बन्ध नहीं है । हम स्त्रियोंको अवश्य ही

  1. १. नरसिंहराव दिवेटिया ।
  2. २. आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव ।