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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अशिक्षित तो रखना नहीं चाहते । परन्तु स्त्री-शिक्षाकी पद्धति क्या होनी चाहिए। कन्याओं और स्त्रियोंकी शिक्षा कहाँसे दो भागों में विभक्त होती है, यह विषय बिल-कुल स्वतन्त्र है और इसका सम्बन्ध केवल शिक्षासे है । इस समय तो हमारी दृष्टि संकुचित है। मैं फिलहाल लड़कियोंको प्राथमिक शालाओंमें ले जाऊँगा और उनसे चरखा चलवाऊँगा । दूसरे सूक्ष्म प्रश्नोंपर मैं विचार नहीं कर पाया हूँ। हालाँकि लड़कियोंकी शिक्षाके प्रयोग जितने मैंने किये हैं उतने शायद ही किसी दूसरेने किये हों । मैंने जवान लड़के और लड़कियोंको साथ-साथ रखकर पढ़ाया है। इसके लिए मुझे जरा भी पश्चाताप नहीं है। हाँ, मेरी अँगुलियोंमें कुछ आँच जरूर लगी है; परन्तु वे पूरी जली नहीं ? क्योंकि मैं उनपर सिंहकी तरह गरजता रहता था । मैं अधिक नहीं कह रहा हूँ इससे आप यह हरगिज न समझें कि मैं इस विषयकी अवहेलना करता हूँ ।

ये प्रस्ताव[१] मैंने अपने विचारोंके निचोड़ के रूपमें तैयार किये हैं। आप उनपर विचार कर लें । आप इन्हें केवल इसीलिए न मान लें कि उन्हें मैंने पेश किया है । मैं कांग्रेसके अधिवेशनमें तो लट्ठ लेकर पहुँचा था कि मेरा प्रस्ताव पास करना ही होगा । यहाँ तो मैं सिर्फ सलाहके रूपमें उन्हें पेश कर रहा हूँ । यदि आप इनका विरोध निर्भय होकर करेंगे तो मुझे जरा भी दुःख न होगा । मुझे दुःख होता है, पाखण्ड और प्रतिज्ञा करके उसे तोड़नेपर । परन्तु यहाँ पाखण्डकी कोई बात नहीं है, क्योंकि इस बारेमें हमारी कोई प्रतिज्ञा नहीं है ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ३-८-१९२४

२६८. राष्ट्रीय शिक्षा-परिषद्के प्रस्ताव[२]

अहमदाबाद
१ अगस्त, १९२४

प्रस्ताव सं० १ : - इस परिषद्की राय है कि चूंकि राष्ट्रीय स्कूलोंकी स्थापना स्वराज्य की सिद्धि और असहयोग में सहायताके उद्देश्य से की गई है, इसलिए स्कूलोंको चलाने में असहयोगके सिद्धान्तोंका त्याग कदापि नहीं किया जाना चाहिए।

प्रस्ताव सं० २ : - इस परिषद्की राय है कि स्कूलोंको चलानेमें छात्रोंकी संख्या-पर नहीं अपितु उनकी योग्यतापर जोर दिया जाना चाहिए। इसलिए उनमें ऐसे लड़कों और लड़कियों को दाखिल किया जाना चाहिए जिनके अभिभावक स्वराज्य और असहयोगकी दृष्टिसे स्वीकार किये गये सिद्धान्तोंको पसन्द करते हों, अर्थात् :

(१) इनमें जो हिन्दू हों वे अस्पृश्यताको पाप मानते हों और जिन्हें अपने बालकों को अन्त्यजोंके बच्चोंके साथ बैठने और पढ़ने देनेमें कोई आपत्ति न हो,

  1. १. देखिए अगला शीर्षक ।
  2. २. गांधीजीने परिषद् के अध्यक्षके नाते इन प्रस्तावोंको पेश किया था ।