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राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् के प्रस्ताव


(२) जो अपने बच्चोंको बुनाईकी कला सिखाना पसन्द करते हों, और
(३) जो हिन्दू-मुस्लिम और इतर धर्मावलम्बी भारतवासियोंके बीच एकताकी आवश्यकता और सम्भावना में श्रद्धा रखते हों ।

प्रस्ताव सं० ३ :- इस परिषद्की राय है कि राष्ट्रीय स्कूलोंके शिक्षक ऐसे होने चाहिए जो स्वराज्य-सिद्धिके लिए शान्ति, सत्य तथा असह्योगके समस्त अंगोंको आवश्यक साधन मानते हों।

प्रस्ताव सं० ४:- इस परिषद्की राय है कि कताई सम्बन्धी कार्यसे अनभिज्ञ प्रत्येक शिक्षक और शिक्षिकाको कपासकी किस्म पहचानने, कपास ओटने, रुई धुनने, पूनियाँ बनाने, सूत कातने उसके अंक और गुणकी परीक्षा करनेका ज्ञान तुरन्त प्राप्त करना चाहिए।

प्रस्ताव सं० ५: - प्राथमिक स्कूलोंके शिक्षकों की शिक्षण शक्तिमें वृद्धि हो, इस दृष्टिसे यह वांछनीय है कि विद्यापीठ निम्न व्यवस्था करे:
(१) शिक्षकोंके लिए पाठ्यक्रम निश्चित करे ;
(२) समस्त शिक्षकोंकी एक सामान्य परीक्षा ले;
(३) नये शिक्षकों की छमाही परीक्षा ले ;
(४) शिक्षकोंके लिए पत्र-व्यवहार द्वारा शिक्षाके वर्ग चलाये;
(५) शिक्षकोंकी शिक्षण शक्तिके विकास के लिए ऐसे अन्य कार्य भी करे ।

प्रस्ताव सं० ६:- - चूंकि असहयोगका शाश्वत स्वरूप आत्मशुद्धि है और असह- योगके तत्वोंका गाँवों में प्रसार करना कांग्रेसका उद्देश्य है और गाँवोंमें आत्मशुद्धिका कार्य बालकोंसे ही शुरू किया जाना चाहिए, इसलिए परिषद्की यह मान्यता है कि विद्यापीठको उच्च और माध्यमिक शिक्षाकी तुलनामें प्राथमिक शिक्षाको प्रधानता देनी चाहिए और इस दृष्टिसे प्राथमिक शिक्षामें उचित परिवर्तन करके उसका प्रचार गाँवोंमें करना चाहिए ।

प्रस्ताव सं० ७ : - इस परिषद्की यह राय है कि राष्ट्रीय ग्राम- स्कूलोंकी स्थापना- में सरकारी स्कूलों की वर्तमान पद्धतिका अनुकरण नहीं किया जाना चाहिए और इसकी बजाय ग्राम-स्कूल प्राचीन पद्धति के आधारपर चलाये जाने चाहिए।

प्रस्ताव सं० ८ :- विद्यापीठ और स्वतन्त्र राष्ट्रीय संस्थाओंने राष्ट्रीय शिक्षाको प्रोत्साहन देने के शुभ उद्देश्यसे प्रेरित होकर जो पाठ्य पुस्तकें प्रकाशित की हैं, यह परिषद् उसके लिए उन्हें बधाई देती है। लेकिन साथ ही परिषद्की यह राय है कि विद्यापीठ और अन्य संस्थाओंको पाठ्य पुस्तकोंकी संख्याकी अपेक्षा उनकी अच्छाईकी ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। उन्हें इस सम्बन्धमें इसके साथ-साथ देशकी गरीबी-का भी ध्यान रखने की जरूरत है।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, ३-८-१९२४