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२६९. भाषण : शिक्षा परिषद् के प्रस्तावपर[१]

२ अगस्त, १९२४

इस प्रस्तावके[२] सम्बन्धमें खासी बहस हो चुकी है । काकाने[३] जो प्रोत्साहनके शब्द कहे हैं मैं उनपर ठण्डा पानी डालना चाहता हूँ । यदि आप जोशमें आकर इस प्रस्तावको स्वीकार कर लेंगे तो इससे कोई लाभ नहीं होगा । यदि हममें इस प्रस्ताव-को कार्यान्वित करनेकी शक्ति न हो तो हमें यह बात कबूल कर लेनी चाहिए। इस तरह कबूल करनेमें दुर्बलता नहीं, सबलता है। यदि आपको दुर्बलताका नमूना देखना हो तो मैं स्वयं मौजूद हूँ । आप मुझपर जितने पत्थर फेंकना चाहें उतने फेंक सकते हैं। जो वस्तु हमारे भीतर न हो वह है, यह दिखाने-बतानेका ढोंग करना केवल अहम् और दुराग्रह है । इस प्रस्तावमें जो कुछ कहा गया है, जिन लोगोंसे उसका पालन न हो सके वे कदापि आगे न बढ़ें। बाकी लोग सोलहों आने अपना योग दें। मैं तो उनका पूरा सहयोग लेने के लिए ही खड़ा हुआ हूँ । यदि हम अपनी शक्तिका अनुमान लगाये बिना आगे बढ़ेंगे तो हमारी दशा उस कपड़ा मिलके[४] समान ही होगी जो हाल ढह गई । यदि इस मिलके आसपासकी अन्य इमारतें वैसीकी-वैसी ही खड़ी रहीं और यह मिल गिर गई तो इस मिलमें कुछ-न-कुछ कमी तो अवश्य ही होगी। हम ऐसी स्थितिसे वचना चाहते हैं । इसलिए इस प्रस्तावके द्वारा हमें यह मालूम करना है कि हमारे पास असहयोगके कितने सिपाही हैं; असहयोग-सिद्धान्तमें विश्वास रखनेवाले कितने लोग हैं ।

वस्तुतः देखा जाये तो इसमें सिद्धान्तकी बात परोक्ष रूपसे ही आती है। इसमें असली बातें तो केवल दो ही हैं : अन्त्यज और चरखा । हम इनके लिए तैयार हैं या नहीं ? इनमें से एक बात तो हृदय परिवर्तन करने और आजीविकाको जोखिममें डालनेकी है। दूसरी आलस तजकर हाथ हिलाने अर्थात् कुछ करने धरनेकी है। जिस मनुष्यको इतना करनेकी इच्छा न हो और जिसमें इतनी शक्ति न हो उसे इसमें से चुपकेसे निकल जाना चाहिए।

हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता महापाप है। जैसे-जैसे कालचक्र घूमता है वैसे-वैसे हिन्दू धर्मकी कसौटी होती जाती है। यदि हिन्दू धर्म इस कसौटीपर खरा न उतरा तो वह इस दुनिया से मिट जायेगा, इस बारेमें मेरे मनमें तनिक भी शंका नहीं है । हमारे सामने प्रश्न यह है कि अब हमें शुद्ध होना है अथवा दूसरोंको अस्पृश्य बनाये रखकर जगत्में स्वयं अस्पृश्य बनना है ? दक्षिण आफ्रिका, पूर्व आफ्रिका और यहाँ हिन्दुस्तानमें

  1. १. महादेव देसाई द्वारा लिखे शिक्षा परिषद्के विवरणसे उद्धृत ।
  2. २. परिषद्का पाँचवाँ प्रस्ताव ।
  3. ३. काका कालेलकर ।
  4. ४. देखिए " कारखानेमें दुर्घटना ", ३-८-१९२४ ।