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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अहंकार क्यों हो? बहनको खिलानेवाला मैं कौन हूँ ? यदि मेरी आँखें मुंद जायें तो? मेरे जैसा-मनुष्य तो अपने पीछे यह वसीयत भी कर जा सकता है कि 'मैं अपनी बहन के लिए दहेज में देनेके लिए पैसा नहीं वरन् चरखा छोड़े जाता हूँ ।'

मैं प्रोत्साहनके शब्द कहना नहीं चाहता था, मैं तो ठण्डा पानी डालना चाहता था; लेकिन मैं अनायास ही यह सब बोल गया । यदि इन दो कामोंको करनेकी आपकी तैयारी न हो तो आप इस प्रस्तावको फाड़ फेंके। यदि आपकी इतनी तैयारी हो, आपमें इतना बल हो तो आप इसको स्वीकार करें। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो काम आगे नहीं बढ़ेगा और बादमें हम हिन्दुस्तान से यह भी न कह सकेंगे कि गुजरातमें इतने राष्ट्रीय स्कूल हैं और उनमें इतने विद्यार्थी पढ़ते हैं ।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, १०-८-१९२४

२७०. भाषण : स्त्री-शिक्षा के सम्बन्ध में[१]

२ अगस्त, १९२४

भाई चन्दूलाल मेरे कहने का अर्थ नहीं समझे । यह प्रश्न गम्भीर है, महत्त्वका है; यह इतना ज्यादा गम्भीर है कि यह परिषद् उसपर विचार करनेमें असमर्थ है। पद्माबहनने जो कुछ कहा है उससे तो मुझे अचरज ही हुआ है।[२] मेरे लिए तो गणिकाएँ बहनकी तरह हैं । मैं जहाँ गया हूँ मैंने वहीं उनके दर्शन किये हैं तथा मैं उनके दर्शन भविष्यमें भी करनेवाला हूँ और उनके सामने चरखेका सुझाव रखनेवाला हूँ । मेरे विचार जेल जानेके बाद जरा भी नरम नहीं पड़े हैं । मेरे मनमें स्त्री- शिक्षा के बारेमें विचार इतनी तेजीसे उठ रहे हैं कि मैं उन्हें यहाँ रख नहीं सकता । मेरा दावा है कि मैंने इस बारेमें किसी अन्य मनुष्यकी अपेक्षा अधिक सोचा है । मैं यह भी दावा करता हूँ कि इस आन्दोलनसे जितनी जागृति स्त्रियोंमें हुई है, उतनी किसी अन्य वर्गमें नहीं हुई ।

चरखा स्त्रियोंके हृदयोंको हिलाये बिना नहीं रह सकता । यहीं उनकी सच्ची शिक्षा है । और जो काम वे खुद कर रही हैं उसके बारेमें प्रस्ताव क्या पास करना ? इन प्रस्तावोंको तो थोथा ही समझिए । हमारे आँगन में क्या-क्या हो रहा है, हमें यही नहीं दिखाई देता । लगभग जंगली और अपढ़ मानी जानेवाली स्त्रियाँ पर्दा छोड़कर बाहर निकल आई, क्या हम कई बरसोंमें भी उनको इससे ज्यादा शिक्षा दे सकते

  1. १. यह भाषण महादेव देसाईंकी डायरोमें दिये गये अहमदाबादकी शिक्षा-परिषद्के विवरणसे लिया गया है । यह श्री चन्दूलाल दवेके उस प्रस्तावपर दिया गया था जिसमें अहमदाबादके राष्ट्रीय विद्यापीठसे स्त्रियोंकी शिक्षाकी कोई निश्चित व्यवस्था करनेका अनुरोध किया गया था।
  2. २. पद्मावहनने श्री दवेके प्रस्तावका समर्थन करते हुए कहा था : “ गांधीजी तो गणिकाओंतक से बहुत सहानुभूति दिखाते हैं। यदि वे ही हमारी उपेक्षा करेंगे तो हमारी कैसी दुर्दशा होगी ?"