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भाषण : स्त्री-शिक्षाके सम्बन्धमें

थे ? स्त्री-शिक्षा इस आन्दोलन के साथ-साथ ही चल रही है; बल्कि स्त्रियोंको शिक्षा न मिल रही होती तो यह आन्दोलन चल ही नहीं सकता था ।

स्त्री-शिक्षाका विषय आपके, मेरे और सबके बूते के बाहर की बात है । इसपर विचार करना तो समुद्रको उलटने और मृगजलको हाथमें पकड़नेका प्रयत्न करने के बराबर है । स्त्री तो अर्धांगिनी है, उसको यह शिक्षा कौन दे सकता है ? थोड़ी-सी स्त्रियाँ कर्वे विद्यापीठकी ग्रेजुएट हो जायें तो इससे क्या होगा ? इससे उनको सच्ची शिक्षा नहीं मिलनेवाली है। यदि यह समझ में आ जाये कि स्त्री अर्धागिनी है तो उसको सच्ची शिक्षा मिलने लगेगी ।

इसके लिए हमें फुरसतसे बैठना चाहिए, सोचना चाहिए और बहुत से लोगों-को मिलकर सलाह करनी चाहिए। अगर ऐसी बात हो कि विद्यापीठके कुलपतिकी हैसियत से मुझे कुछ-न-कुछ तो करना ही चाहिए, तो मैं कहता हूँ कि चन्दूलाल और अन्य भाई हमपर जो बोझा डाल रहे हैं, वह असह्य है । न हमारे पास साधन हैं और न हमारे पास इतनी बहनें हैं। कुलपतिकी कितनी ही इच्छा क्यों न हो, परन्तु वह बेचारा क्या कर सकता है ? कुछ रुपये खर्च करने और कुछ कन्याशालाएँ खोलनेसे स्त्री-शिक्षा पूरी नहीं हो सकती । इसीलिए मैं चुपचाप बैठा हूँ। हमारी शालाएँ और हमारे विद्यालय लड़कियोंको प्रविष्ट करनेके लिए तैयार हैं । यदि कोई योजना बनाकर लाये तो विद्यापीठ उसपर विचार करनेके लिए तैयार है, मगर वह खुद योजना नहीं बनायेगा । जो 'विशेषज्ञ' हैं वे यह भार उठायें, अपने विचार पेश करें, खूब आन्दोलन करें और कार्यकारिणी परिषद् में जायें । विद्यापीठ इस कामसे अलग नहीं होगा । परन्तु यदि कोई स्वराज्यके सिलसिले में शिक्षाकी बड़ी योजना तैयार करे तो विद्यापीठ उसपर विचार करनेसे इनकार ही करेगा। विद्यापीठ इस विषयकी उपेक्षा करना और उसे भुलाना नहीं चाहतीं। मैं तो सिर्फ उसकी अशक्तिकी ही बात करता हूँ। मैं खुद इस प्रस्तावपर पन्द्रह मिनटमें विचार नहीं कर सकता। मैं सरदार और सिपाही की हैसियतसे नम्रतापूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि आप अपना यह भ्रम त्याग दें कि मुझे स्त्री-शिक्षाकी कुछ भी लगन नहीं है और सिर्फ इसलिए यह प्रस्ताव वापस ले लें कि हमारी हँसी न उड़े।[१]

यहाँ जितना काम हुआ है उस सबका श्रेय आप लोगोंको ही है । आपने मुझे अपने उपकारके भारसे दबा दिया है। आप इसमें स्वीकार किये गये प्रस्तावोंपर अमल करके मुझे और भी अधिक उपकृत करें। मेरी प्रार्थना यही है कि आप इन प्रस्तावोंको भुला न दें, इनको अपने मस्तिष्क में कायम रखें। आप इनको अमल में लाकर इनका मीठा फल खुद खायें और गुजरातको खिलायें । ईश्वर आपको इसके लिए बल दें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १०-८-१९२४
  1. १. इसके बाद चन्दूलाल दवेने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया और गांधीजीने कुछ शब्द कहकर परिषदकी कार्रवाई समाप्त कर दी।