पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५४२

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२७१. इर्विन बैक्टके पत्रपर निर्देश[१]

[ २ अगस्त, १९२४ के पश्चात् ]

गणेशन द्वारा प्रकाशित सामग्री, 'यंग इंडिया' और 'इंडियन होमरूल' भेज दिये जायें। 'यंग इंडिया' नियमित रूपसे भेजा जाये और उसका मूल्य श्री बिड़लाके खाते में डाल दिया जाये । पत्रलेखकको सूचित कर दें कि वे भुगतान के बारेमें चिन्ता न करें। वे चाहें तो बिना कुछ लिये भाषण दें, अथवा उससे अर्जन करें या सामग्रीका जैसा चाहें वैसा उपयोग करें ।

मूल प्रति (एस० एन० १००९१) की फोटो नकलसे ।

२७२. कारखानेमें दुर्घटना

मनसुखभाईकी मिलकी दुर्घटना हमारे सामने अहमदाबादमें ही हुई, इस कारण हमारे दिल दहल उठे। परन्तु मलाबारपर इस समय जो दिपत्ति आई हुई है[२] हमें उसका खयालतक नहीं आता; आता भी है तो क्षण-भरके लिए ही । और यदि हिन्दुस्तान से बाहर किसी देशमें जानोमालकी हानि मलाबारकी हानिसे भी अधिक बड़ी हो तो हमारे दिलोंपर शायद कुछ भी असर न हो । परन्तु ये दुर्घटनाएँ हमें बताती हैं कि राजा और रंक, ब्राह्मण और चाण्डाल, मनुष्य और पशुके बीच कुछ भी अन्तर नहीं है । ईश्वरीय दुर्घटनाएँ जहाँ होती हैं उनका फल सबको समान रूपसे भोगना पड़ता है। एक जहाजमें बैठे मनुष्य और पशु सब एक ही साथ डूबते हैं। मनुष्य भेदभाव रखकर पहले अपने सगे-सम्बन्धियोंको बचाता है और फिर हो सका तो पशुओंको बचाता है । इन बचाये हुए लोगोंमें से भी कुछ लोग तो दूसरे ही दिन मर जाते हैं और शेष कुछ दिन बाद । जब मौत किसीको नहीं बख्याती तब हम उसका आलिंगन प्रसन्नतापूर्वक क्यों न करें ? हम उसे अपना परम मित्र क्यों न मानें? वह अनेक आपत्तियोंसे मुक्त करनेवाली और दुःखविनाशिनी क्यों न मानी

  1. १. गांधीजी द्वारा लिखे गये १५ मार्च, १९२४ के पत्र ( देखिए खण्ड २३, पृ० २६२-६३ ) की प्राप्ति स्वीकार करते हुए इरविन बैक्टेने २ अगस्त, १९२४ को गांधीजीको लिखा था कि आपके कार्योंमें दिलचस्पी 'रखनेवाले कुछ लोगोंने मुझसे भारतीय धर्म, इतिहास और साहित्य विषयक प्रश्नोंपर भाषण देनेको कहा है। उन्होंने आगे लिखा था : “ मुझे आपकी लिखी कुल किताबोंकी सख्त जरूरत है। मेरे पास केवल एथिकल रिलिजन हैं। तथापि मैं आपको अन्य पुस्तकें भी पाना चाहूँगा, और यदि मेरे पास काफी पैसा होता तो मैं सीधे सम्पादकसे ही उन्हें मँगवा लेता। लेकिन मैं अपनी साहित्यिक कृतियोंसे ही जीविका कमाता हूँ और इनसे मुझे बहुत थोड़ा ही मिल पाता है ।
  2. २. देखिए, “ मलबार में बाढ़ ", १०-८-१९२४ ।