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२८१. पत्र : कामाक्षी नटराजनको

६ अगस्त, १९२४

प्रिय श्री नटराजन,[१]

पत्रके लिए धन्यवाद । आपने जो कतरन भेजी है, उसे मैंने देखा था । जब मैंने वह खबर देखी थी तो मन हुआ था कि तार भेजनेवाले संवाददाताको गोली मार दूं । लेकिन ऐसा करना मेरे धर्मके विरुद्ध है; इसलिए मैं शान्त हो गया और यह मनको भरोसा दिलाया कि होश- हवासवाला कोई पुरुष या स्त्री इसपर विश्वास नहीं करेगा कि मैंने ऐसी बेहूदा बात[२] कही होगी। मेरे किसी भी तारमें चरखेका उल्लेख नहीं है। हो भी कैसे सकता है ? चरखेसे तभी मदद मिल सकती है जब लोग सूखी धरतीपर बस गये हों और उस मानसिक आघातसे सँभल चुके हों जिसने हमारे हजारों देशवासियोंको अवश्य ही किंकर्तव्य विमूढ़ बना दिया है।[३] अहमदा-बादके लोगोंसे जो बात मैंने कही वह यह थी कि यह काम किसी भी गैर-सरकारी संस्थाकी सामर्थ्य से बाहर है, लेकिन यदि वे मुझे पैसा भेजेंगे तो मैं उसे ठीक जगह पहुँचा देनेकी व्यवस्था कर दूंगा। मैंने यह भी कहा कि सभी श्रोता, गरीब हों या अमीर, अपने वस्त्रहीन भाई-बहनोंके लिए कताई करें और वह सारा सूत मुझे भेज दें। मैं यह जिम्मेदारी लेता हूँ कि उसका इस्तेमाल पीड़ितों के लिए किया जायेगा । सच तो यह है कि इस खबर ने मुझे सन्न कर दिया है। जब प्रकृति अपनी भयंकर चोट करती है तब हम कितने बेबस हो जाते हैं, यह सोचकर मैं छटपटा रहा हूँ । ईश्वरके मंगलमय होनेमें मेरा प्रबल विश्वास है; इसीलिए मैं प्रकटतः संकट जान पड़नेवाली इस घटना में से भी किसी शुभ परिणामकी आशा कर रहा हूँ और वही आशा मुझे विक्षिप्त हो जानेसे बचाये हुए है ।[४]

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
  1. १. सम्पादक, इंडियन सोशल रिफॉर्मर, बम्बई ।
  2. २. देखिए " भेंट : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के प्रतिनिधिसे ", ७.८-१९२४ ।
  3. ३. जुलाई १९२४ में मलावार में बाढ़ आई थी। यह संकेत उसीकी ओर है।
  4. ४. ८ अगस्तको इस पत्रको श्री नटराजनने जी० के० पारेखको अध्यक्षता में हुई एक सार्वजनिक सभा में पढ़कर सुनाया था।