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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकती है; और तो जो लाभ हैं, वे हैं ही। शिक्षकगण जरा हिसाब लगायें कि प्रत्येक बालक या बालिकाके मनमें यदि यह खयाल आ जाये कि वह बालक या बालिका अन्य पाँच बच्चोंके साथ मिलकर एक महीने में इतना सूत कात सकते हैं जिससे मद्रासकी हालकी बाढ़में निर्वस्त्र हो जानेवाले एक देशभाईके लिए एक धोती तैयार हो सकती है। तो इसका मतलब कितना बड़ा सबक सीख लेना है ।

लेकिन राष्ट्रीय पाठशालाओं में कांग्रेस कार्यक्रमके रचनात्मक हिस्सेकी इस स्वल्प सफलताका कारण अवश्य स्पष्ट कर देना चाहिए । अब यह दुःखद तथ्य प्रकट हो रहा है कि हम जो विशिष्ट और चुनिन्दा लोग हैं उन्होंने कताईतक नहीं सीखी है । इन पाठशालाओंके शिक्षकोंने अबतक सामूहिक रूपसे ऐसा कोई प्रयत्न नहीं किया जिससे वे सब धुनने और कातनेकी योग्यता प्राप्त कर लेते। फिर क्या आश्चर्य है कि वे अपने शिष्योंको प्रेरणा नहीं दे पाते और हर जगह चरखेका अभाव खटकता रहता है।

लेकिन यह बड़े सन्तोषकी बात है कि इस दोषको दूर करने के लिए सुझाये गये सभी प्रस्ताव बहुत बड़े बहुमतसे स्वीकार कर लिये गये । शिक्षक और विद्यार्थी-का किसी उद्योग में व्यस्त रहना हमारे लिए एक नई बात है । इसलिए यदि इस ओर पूरा उत्साह नहीं दिखाया गया है तो वह शायद स्वाभाविक ही है । लेकिन चूंकि शिक्षकोंने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिये हैं, इसलिए अब उनका तदनुसार आचरण न करना उनके लिए बड़े कलंककी बात होगी। मुझे इसमें सन्देह नहीं कि यदि शिक्षक सचमुच चाहें तो अधिकांश माता-पिता भी यह बात नापसन्द नहीं करेंगे कि उनके बच्चे कताईकी प्रशस्त कला सीखें और प्रतिदिन आधा घंटा देशके कार्य में लगावें तथा अन्त्यज बालकोंके साथ उठे-बैठें। मुझे आशा है कि गुजरात के शिक्षकोंने जो कुछ करने का निश्चय किया है, सारे देश के राष्ट्रीय शिक्षक भी वही करेंगे ।

[ अंग्रेजी से ]
यंग इंडिया, ७-८-१९२४