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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दुर्भिक्षमें राहत पहुँचानेके लिए

मेरे इस कथनके समर्थनमें कि दुर्भिक्षमें राहत पहुँचाने के लिए चरखा सबसे अधिक समर्थ साधन है,[१] तमिलनाड खादी बोर्डके मन्त्री लिखते हैं :[२]

कोयम्बटूर जिलेको 'गरीब' कहना शायद सही न हो। किन्तु यह अधि- कांश में एक सूखा जिला है और यहाँ जब वर्षा नहीं होती, जैसा गत वर्ष हुआ, तब अवश्य ही दुर्भिक्ष पड़ जाता है। गत वर्षके अन्त में यहाँ भयानक दुर्भिक्ष था। लोग अपने पशु बिना कुछ लिये दे देते थे । स्त्रियोंके लिए चरखा चलाना एक सरल और नितान्त स्वाभाविक व्यवसाय होनेसे स्त्रियोंने हजारोंकी संख्या में रुई प्राप्त करनेके लिए खादी उत्पादकोंको जा घेरा । खादी उत्पादकोंने यथा- सम्भव अधिक से अधिक स्त्रियोंको रुई दी। इसके परिणामस्वरूप नवम्बर तथा दिसम्बर मासमें खादी में लगी ७५,००० रु०की कुल पूंजी रुक गई। फरवरी में खादी उत्पादकों को खादीका उत्पादन बन्द कर देना पड़ा । . . . मुझे यह कहते हुए खुशी होती है कि हमारे प्रयत्नोंसे अब परिस्थिति बदल गई है और उत्पादन फिर तेजीसे हो रहा है।. . .

एक ब्राह्मणका कथन

एक मित्रने निम्नलिखित पत्र भेजा है । आशा है यह दिलचस्पीसे पढ़ा जायेगा ।[३]

'दोषपूर्ण उत्पादन '

एक गम्भीर प्रकृतिके मित्र लिखते हैं:

आपने 'यंग इंडिया' के गत अंक में खादीके अधिक उत्पादनका उल्लेख किया है और उसकी बिक्रीको व्यवस्था करनेकी आवश्यकतापर जोर दिया है । आपने यह इच्छा भी व्यक्त की है कि बम्बई-जैसे नगर अतिरिक्त खादीके मालको खरीद लें। किन्तु, यदि बिक्रीको व्यवस्था अपर्याप्त है तो क्या उत्पा-दनकी प्रणाली में दोष नहीं है ? खादी आज भी मिलके कपड़ोंसे कहीं अधिक महँगी है और इसमें भी सन्देह है कि दामोंको देखते हुए टिकाऊ भी होती है या नहीं। इस समय तो वे ही लोग, जो तीव्र भावनासे प्रेरित होते हैं तथा जिनके पास अतिरिक्त पैसे हैं, खादीकी विलासिताका सुख ले सकते हैं । आपकी टिप्पणीसे ध्वनित होता है कि उसे आर्थिक सहायता चाहिए। किन्तु केवल आर्थिक सहायता क्या कर सकती है ? यदि उत्पादनकी प्रणाली दोषपूर्ण

  1. १. देखिए " पत्र : कामाक्षी नटराजनको ", ६-८-१९२४, और “भेंट : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिसे", ७-८-१९२४ ।
  2. २. अंशत: उद्धृत ।
  3. ३. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उक्त ब्राह्मणने अपने धार्मिक कुटुम्बकी परम्पराओंका विस्तृत वर्णन लिखकर यह स्पष्ट किया था कि सूत कातना आध्यात्मिक कर्म माना जाता है और वह किसी ब्राह्मणके लिए निषिद्ध न होकर प्रशस्त है ।