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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोग जैसा करते हैं, जनता भी वैसा ही करती है । किन्तु जैसा वे उपदेश देते हैं, वैसा नहीं करती। इसलिए कताई सम्बन्धी प्रस्तावकी आवश्यकता थी । इससे गाँवोंके प्रति अपने उत्तरदायित्वका वास्तविक बोध होता है । इससे वातावरणमें कताईके प्रति रुचि उत्पन्न होती है और खादीके दाम घटते हैं। यदि देश कताईके प्रस्तावपर ईमानदारी से अमल करे तो इसमें वह शक्ति है जिसकी हमने अभीतक कल्पना भी नहीं की है ।

उपदेश

आपकी वृत्ति मुसलमानोंकी बेहद तारीफ करने की है। आपका ऐसा खयाल जान पड़ता है कि आप उन्हें उनकी उद्दण्डताके दोषसे मुक्त करके हिन्दुओंके मनमें उनके प्रति घनिष्ठताका भाव उत्पन्न कर सकते हैं । अब आपको यह सीखना है कि दोष उन्हीं लोगोंपर मढ़ा जाये जो अपराधमें शामिल हैं। यही न्यायका भी तकाजा है, क्योंकि राष्ट्रके कमजोर तथा दीन सदस्योंपर दोष मढ़ना और शक्तिशाली तथा उद्दण्ड लोगोंकी चापलूसी करना बुद्धिमत्तापूर्ण नीति कदापि नहीं हैं ।

एक हिन्दू मित्रने अपने पत्र में मुझे जो लम्बा उपदेश दिया है, यह उसीका एक अंश है। मैं जानता हूँ कि अन्य बहुतसे हिन्दुओंका खयाल भी इन्हीं सज्जनके समान ही है । किन्तु तथ्य यह है कि सन्देह तथा आवेशसे भरे हुए वातावरणमें, मेरी निष्पक्षतामें पक्षपातका भ्रम होगा ही । जो हिन्दू यह मानते ही नहीं हैं कि इस्लाम या मुसलमानोंमें भी कोई अच्छाई हो सकती है, उन्हें किसीको इस्लाम या उसके अनुयायियोंका बचाव करते देखकर धक्का लगना स्वाभाविक ही है । मैं इससे न अशान्त होता हूँ और न विचलित; क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे हिन्दू आलोचक एक दिन मेरे निर्णयको उचित मान लेंगे । वे शायद यह स्वीकार करेंगे कि जबतक प्रत्येक पक्ष एक-दूसरेके दृष्टिकोण तथा कमजोरियों को भी समझने, सराहने और सहन करनेके लिए तैयार नहीं होता तबतक एकता नहीं होगी । इसके लिए हृदयकी विशालताकी, जिसे दूसरे शब्दोंमें उदारता कहते हैं, आवश्यकता है, हम दूसरोंके प्रति वैसा ही व्यवहार करें जैसा व्यवहार हम दूसरोंसे अपने प्रति चाहते हैं ।

दिल्लीकी हलचल

मौलाना मुहम्मद अलीके एक खतसे मालूम होता है कि वे दिल्ली में विभिन्न दलवालोंके बीच पूर्णरूपसे समझौता कराने की भरसक कोशिश कर रहे हैं और उन्हें आशा है कि सफलता मिल जायेगी। वे एक जाँच कराने की भी चेष्टा कर रहे हैं । इसके लिए निहायत सावधानी से काम लेने की जरूरत है। मौलाना साहब कहते हैं, वहाँ परस्पर इतना अविश्वास फैला हुआ है कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जाँच कराना ही नहीं चाहते। मौलाना साहब बीमार हैं और ज्यादातर बिस्तरपर ही पड़े रहते हैं । वे एक जगह से दूसरी जगह डोली में बैठकर जाते हैं, फिर भी सन्धि-वार्त्ता चला रहे हैं। हमें आशा रखनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए कि मौलाना साहब जल्दी