पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अच्छा उपयोग करूंगा। मुझे विश्वास है कि यह क्षति इतनी बड़ी है कि इसमें असंगठित या छुटपुट प्रयत्न अधिक कारगर नहीं हो सकते। किसी भी संस्थाको जिसे सार्वजनिक विश्वास प्राप्त हो, इस भयानक विपत्तिको देखते हुए सरकारी संस्थाकी सहायता करनेमें संकोच नहीं करना चाहिए । विपत्ति में लोग दुश्मनी भूलकर एक हो जाते हैं ।

मौलाना हसरत मोहानी

आखिर महान् हसरत मोहानी आगामी १२ ता० को छूट रहे हैं। वे कानपुर जाते हुए रास्ते में अहमदाबादमें उतरेंगे। वे जहाँ भी जायेंगे वहाँ धूमधामसे उनका स्वागत किया जायेगा। पता नहीं, आज उनके विचार क्या हैं। सभी जानते हैं कि मेरा उनसे अनेक बातों में मतभेद है । जेलमें आचरण कैसा किया जाना चाहिए, इस विषयमें मेरा मत उनसे बिलकुल नहीं मिलता। मैं उनके स्वदेशी-सम्बन्धी विचारोंको खतरनाक तक मानता हूँ । परन्तु इतना मतभेद होते हुए भी मैं उनका, उनकी देशभक्ति-का और उनकी विद्वत्ताका अत्यन्त आदर करता हूँ। उनकी दृढ़ताको देखकर उनके मित्रोंको उनसे स्पर्धा होती है और शत्रुओंको निराशा । उन्होंने अपने देश और धर्मके लिए जितना कष्ट सहा है उतना हममें से बहुत कम लोगोंने सहा होगा । इसलिए मैं आशा रखता हूँ कि वे जहाँ जायेंगे वहाँ उनका स्वागत उत्साह के साथ होगा ।

बरार नहीं, विरार

मैंने 'यंग इंडिया' के हालके ही एक अंकमें कहा है[१] कि एक स्वराज्यवादी मित्रने शिकायत की है कि अपरिवर्तनवादी पदोंपर बलपूर्वक अधिकार जमाये हुए हैं। बरारके एक मित्रने लिखा है कि यह बात बरारके बारेमें नहीं हो सकती । इसपर मैंने उक्त स्वराज्यवादी मित्रसे पूछताछ की तो उन्होंने मुझे बताया कि यह खण्डन सही है। शिकायत विरारके विरुद्ध है, बरारके विरुद्ध नहीं । मैं बरारके अपरिवर्तनवादियोंसे क्षमा याचना करता हूँ । वे भी इस बातको स्वीकार करेंगे कि यह भ्रम अक्षम्य नहीं है । विरारके अपरिवर्तनवादी सावधान हो जायें। यदि मैं तानाशाह होता तो तुरन्त इन युद्धोत्सुक अपरिवर्तनवादियोंसे माँग करता कि यदि वे स्वराज्यवादियों तथा कांग्रेससे खुले तौरपर क्षमा-याचना नहीं करते तो वे कांग्रेसकी सदस्यतासे त्यागपत्र दे दें । मेरी यह धारणा है कि इस बार जिसने मुझे सूचना दी है उसे सही खबर मिली है और परिणामस्वरूप मैं भी सही खबर दे रहा हूँ ।

यह उपाय ?

एक पत्रलेखक अपने पत्र में हिन्दू-मुसलमान समस्याका हल इस प्रकार सुझाते हैं। मैं उनके पत्र से निम्नलिखित उद्धरण देता हूँ :

'मुसलमान हिन्दुओंका लिहाज तभी करेंगे जब उन्हें यह मालूम हो जायेगा कि हिन्दू शरीरबलमें उनके ही समान हैं और केवल तभी दोनोंमें एकता सम्भव होगी। इसलिए आपको अपनी सारी शक्ति हिन्दू जातिको शरीरसे बलवान् बनाने में लगानी चाहिए। हिन्दुओंको हर गाँव और शहर में व्यायाम के

  1. १. देखिए " टिप्पणियाँ ", १७-७-१९२४, उपशीर्षक "बड़ा बाजारके कांग्रेसी” ।