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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

असम, दिल्ली, बरार, उत्कल, पंजाब, सिन्ध तथा केरलको छोड़कर अन्य प्रान्तोंने सूचित किया है कि वे अपने रजिस्टरोंको इस मासकी १० तारीख से पहले भेज देंगे। मुझे पूरी आशा है कि ये शेष प्रान्त भी अपने रजिस्टर भेजने तथा अपने हिस्सेका सूत भेजने में, जो अधिक आवश्यक है, गफलत नहीं करेंगे। मैं यह मान लेता हूँ कि जिन्होंने रजिस्टर भेज दिये हैं वे यह भी ध्यान रखेंगे कि सदस्य अपने हिस्सेका सूत स्वयं कात रहे हैं। यह दिलचस्प बात है कि बंगाल में प्रतिनिधियोंकी संख्या सबसे अधिक है। दूसरे स्थानपर मध्यप्रान्त ( हिन्दुस्तानी ) आता है । यदि सभी प्रतिनिधि अपने हिस्सेका सूत नियमित रूपसे भेजना जारी रखेंगे तो हम सहज ही खादी टिकाऊ बनाने में सफल हो जायेंगे ।

[ अंग्रेजी से]
यंग इंडिया, ७-८-१९२४

२८६. भेंट : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के प्रतिनिधिसे

[ अहमदाबाद ७ अगस्त, १९२४]

मैंने उक्त पत्रको[१] अभी-अभी देखा। ऐसी कोई बात मैंने न लोकमान्यकी पुण्य-तिथिके अवसरपर आयोजित सभामें कहीं और न कहीं दूसरी जगहपर ही । उस बाढ़ग्रस्त प्रान्त में मैंने कई लोगोंको तार दिये हैं, लेकिन किसी में भी मैंने 'कताई' या 'खद्दर' शब्दका प्रयोग नहीं किया है। बड़े ताज्जुब की बात है कि इस खबरपर किसीने विश्वास कैसे कर लिया। मैंने जो मत व्यक्त किया था, उसपर मैं अब भी कायम हूँ। मेरा कहना है कि राहत पहुँचानेका यह कार्य किसी भी गैर-सरकारी संस्थाके बूतेसे बाहरकी बात है; और न कांग्रेसके कोषसे ही यह कार्य सम्पन्न हो सकता है। इस समय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पास बहुत कम पैसा बच रहा है । यह विपत्ति इतनी बड़ी है कि इसमें हर व्यक्तिको -- चाहे वह सहयोगी हो अथवा असहयोगी, उदारदलीय अथवा सरकारी अधिकारी -- अधिक से अधिक सहायता देनी चाहिए। मैं सोच में पड़ा हूँ कि किस तरह सहायता पहुँचाऊँ । पहला तार मिलते ही मैंने 'यंग इंडिया' में एक अपील निकाली थी । एक मित्रसे मैं व्यक्तिगत रूप से मिला भी और उनसे कुछ रकम प्राप्त की । मैं और भी सहायता प्राप्त करनेकी कोशिश कर रहा हूँ । मैंने ऐसी ही अपील 'नवजीवन' के पाठकोंसे भी की है, लेकिन मेरी राय है कि जितनी सहायताकी जरूरत है, उसको देखते हुए, कोई भी एक व्यक्ति चाहे जितना प्रयत्न करें, राहत के लिए वह अपर्याप्त होगी। यह काम तो कारगर तरीकेसे सिर्फ

  1. १. भेंटके दौरान गांधीजीका ध्यान टाइम्स ऑफ इंडियामें प्रकाशित एक पत्रकी ओर आकृष्ट किया गया, जिसमें उनकी इस कथित सलाहको आलोचना की गई थी कि मलाबारके बाढ़ग्रस्त लोगोंको कताई करनी चाहिए।