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भाषण : गुजरात महाविद्यालय में

सरकार ही कर सकती है और यही कारण है कि मैंने कांग्रेसके लोगोंको निःसंकोच भावसे सलाह दी कि वे इस कार्यसे सम्बन्धित किसी भी सरकारी संगठनके काम में हाथ बँटाये । निजी तौरसे दी गई मदद ठीक ही रहेगी; इससे सरकारी संगठनों द्वारा किये गये काममें जो कमी रहेगी, वह पूरी हो जायेगी । राहत देने के ऐसे काममें हाथ बँटाने का मेरे लिए यह पहला ही अवसर नहीं होगा; इससे पहले भी मैं कई बार ऐसा कर चुका हूँ । मुझे इस सम्बन्धमें इतनी पर्याप्त जानकारी है कि जिसके आधार-पर मुझे लगता है कि आगामी कई महीनोंतक राहत पहुँचाते रहना जरूरी होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ८-८-१९२४

२८७. भाषण : गुजरात महाविद्यालय में[१]

अहमदाबाद
८ अगस्त, १९२४

अध्यापक भाइयो, विद्यार्थियों और विद्यार्थिनियो,

आपको कृपलानीजीने राजाका गीत[२] सुनाया; परन्तु यदि राजा छः सालमें आनेकी बात कहकर गया हो और वह उसके बजाय दो ही बरसमें आ खड़ा हो तो इसमें कसूर राजाका है, प्रजाका नहीं । राजाको सोचना चाहिए कि प्रजाको तैयारीका समय नहीं मिला ।

आपसे जितना हो सका आपने उतना दे दिया । परन्तु उसके बारेमें कुछ कहने से पहले मुझे एक फैसला देना है। पक्षोंका नाम लेने की जरूरत नहीं है । आप तो उनको जानते ही होंगे । एक अध्यापकने पत्र लिखकर पूछा है कि चरखा गांधी के लिए कातें या देशके लिए ? यह सवाल आसान है । आज विद्यालयमें शिक्षा पाते हैं, इसलिए आप यह तो समझते ही होंगे कि हर बात के कमसे कम दो पहलू हुआ करते हैं -- एक काला और दूसरा उजला अथवा एक गरम और दूसरा नरम । यदि हम सम्बन्धित पक्षोंके दृष्टि-बिन्दुसे सोचें तो दोनोंकी बातें ठीक ठहर सकती हैं । जो शख्स गांधीके लिए सूत कातता है वह अपनी दृष्टिसे सच्चा है । जो देशके लिए कातता है वह भी सच्चा है। क्योंकि वह जानता है कि गांधी आज नहीं तो कल दुनियामें नहीं रहेगा। इसकी दृष्टि कुछ ज्यादा ठीक मालूम होती है, क्योंकि जहाँ

  1. १. रिहाईके बाद पहली बार महाविद्यालय में आनेपर स्वागतार्थ की गई सभा में दिया गया भाषण । छात्रोंने इस अवसरपर उनको १,२२९ रुपयेकी थैली मलाबारके बाढ़ पीड़ितोंके सहायतार्थं दी थी। उन्होंने बहुत-सा हाथ-कता सूत भी दिया था जिसकी बिक्रीको रकम भी इसी निमित्त खर्च की जानी थी। सभाकी अध्यक्षता आचार्य जीवतराम भ० कृपलानीने की थी ।
  2. २. कृपलानीजीने अपने स्वागत भाषण में रवीन्द्रनाथ ठाकुरकी गीतांजलिकी एक कविता सुनाई थी। इसमें यह भाव है कि हम राजाका स्वागत जैसा करना चाहते थे, वैसा नहीं कर पाये ।