पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३९
भाषण : गुजरात महाविद्यालय में

स्वराज्य के जो-जो साधन माने गये हैं, उन्हें समझ लिया जाना चाहिए। यदि हम उन्हें समझकर उनका पालन न करेंगे तो वह संसारकी आँखों में धूल झोंकने जैसा होगा । यदि विद्यालय में आपने बहुत लिख-पढ़ लिया हो और अंग्रेजी भी आ गई हो और आप संस्कृत इस प्रकार धाराप्रवाह बोलते हों कि आपको काशीके पण्डित भी नमस्कार करें तो भी यह कोई बड़ी बात नहीं है । यहाँ रहकर आपको ये बातें हासिल नहीं करनी हैं। आपको तो यहाँ कुछ अलौकिक गुण प्राप्त करने हैं। ये गुण दूसरे तमाम गुणोंसे बढ़कर हैं । ये हैं चरखा चलाना, अन्त्यजोंको गले लगाना और हिन्दू-मुसलमान-पारसी आदि जातियोंमें एकता कराना । आप किसी अन्त्यज लड़केसे मिले हैं ? आप किसी पारसी अथवा मुसलमान लड़केसे मिले हैं ? क्या आपने उन्हें कभी यह कहा है और समझाया है कि उनके लिए महाविद्यालय में गुंजाइश है ? आप उनसे महा-विद्यालय में आनेका अनुरोध करते हैं ? यदि वे इतना करनेपर भी न आयें तो फिर कसूर आपका नहीं, विधिका है ।

यदि बाहरसे कोई भी मनुष्य आपकी परीक्षा लेनेके लिए आयेगा तो वह आपके अंग्रेजी, गुजराती या संस्कृतके ज्ञानका परिचय देनेवाले उत्तरोंसे मुग्ध न होगा; वह तो दूरसे ही यह देखेगा कि आपके यहाँ चरखे चल रहे हैं या नहीं और अस्पृश्यताका बहिष्कार हो गया है या नहीं। चरखा, अस्पृश्यता और हिन्दू-मुस्लिम एकता-- हमारे कार्यक्रमके ये तीनों अंग हर दर्शकको फूले-फले दिखाई देने चाहिए। यदि आप इनको छोड़कर दूसरी बातों में पास हो जायें तो इसमें आपकी कुछ बड़ाई नहीं । यह तो महाविद्यालय में अपना समय फिजूल गँवाना ही हुआ ।

आप लोग जो कुछ काम यहाँ कर रहे हैं उसके लिए मैं आपका उपकार मानता हूँ । अब आप एक कदम आगे बढ़ायें; अन्यथा आपको और देशको अपनी गर्दन नीची करनी होगी। आप देशके ऐसे सेवक बन जायें कि देश आपको साधुवाद दे । मैं तो गुजरात महाविद्यालयसे ज्यादासे ज्यादा आशा रखता हूँ । आप विचार करके देखें कि हमने अबतक महाविद्यालयपर कितना धन खर्च किया है। प्राप्त रुपयों में से ९० प्रतिशत यहीं खर्च हुआ है । आप खर्चके इन आँकड़ोंका हिसाब खोलकर देखें कि प्रति विद्यार्थीपर हमने कितना खर्च किया है। इससे जिस तरह मैं काँप उठता हूँ उसी तरह लोग भी काँप जायें। आपके दिलमें यह बेकली जरूर होनी चाहिए कि जो रुपया आपके ऊपर खर्चा हुआ है उसके बदलेमें आपने देशकी क्या सेवा की है । यदि ऐसा लगे कि हमारी भावी पीढ़ियाँ हमारे कामसे सन्तुष्ट न होंगी तो आपके लिए इस विद्यालयको छोड़ देना ही अच्छा है । आप इस बात को समझें और इसे गाँठ बाँध लें कि आप असहयोग में स्वराज्य-सिद्धि के लिए निर्धारित स्थायी अंगोंको अवश्य अपनायेंगे। इस बात को समझनेपर ही आप योग्य बनेंगे; आपपर जो कुछ खर्च हुआ है, आपको उससे भी अधिक बल मिलेगा। तभी जिस तरह बीज खेतमें फलता है उसी तरह आपपर खर्च हुई रकम फलेगी । मित्र, विद्यार्थी और कुल-पतिकी हैसियत से मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि आपके सम्मुख केवल दो ही रास्ते हैं । आपको इन दोमें से एकको अपनाना होगा। कुलपति की खातिर सूत देना एक रास्ता है और मेरी खातिर सूत देना दूसरा रास्ता । यदि मुझपर आपकी श्रद्धा