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पत्र : मोतीलाल नेहरूको

हैं, वैसे ही आपके चरखे भी नजर आने चाहिए। मैं आपसे अवश्य ही यह आशा करता हूँ कि आपके तकुए, चमरखे, रुई और पूनी आदि बढ़िया होंगे। आपको इसके लिए आश्रमका मुँहताज रहना उचित नहीं, क्योंकि आप तो 'विशारद' कहलाते हैं । यह आशा यदि आपसे नहीं तो फिर और किससे रखी जाये ? इतना स्वाभिमान तो आपमें जरूर होना चाहिए कि आप इस सबका इन्तजाम स्वतन्त्र रूपसे कर लेंगे ।[१]

आप भोजन खर्च में कमी करके, दूधकी मात्रा घटाकर [ राष्ट्रीय कोषमें ] रुपया दें। यदि आपके पास खाली वक्त बचता है तो आप उसमें सूत कातें और उसे बेचकर उसका रुपया सहायतार्थ दें। आप स्वयं रुपया दें और अपनी जिम्मेदारीपर दूसरोंसे भी जितना इकट्ठा कर सकें उतना इकट्ठा करें। हम देशके निमित्त मरना सीखें। हम अपने देश के प्रति अपने मन में उत्कट प्रेम उत्पन्न करें क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षा-का अर्थ यही है । यदि लोगों को गीली जमीनपर सोना पड़ता हो तो हम उन्हें सूखी जमीन दे सकते हैं और गीली जमीनमें स्वयं सो सकते हैं। हमने बचपनमें दलपत-रामसे[२] यह शिक्षा ली थी कि हमें अपने देशसे माँकी तरह प्यार करना चाहिए। हम देशकी ऐसी सेवा तभी कर सकते हैं जब कि हमारे मनमें इतना प्यार हो। जिन वस्तुओंकी आपको आवश्यकता नहीं है उनमें से कोई वस्तु दे डालने का अर्थ कुछ नहीं होता । आप विशेष कष्ट उठाकर अपने कामकी वस्तुएँ दें। वह आपका विशुद्ध प्रेम होगा। आपको उसका ढोल पीटने की भी जरूरत नहीं है ।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, १०-८-१९२४

२८८. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

साबरमती
९ अगस्त, १९२४

अति गोपनीय
प्रिय मोतीलालजी,

मैंने आपको एक महत्त्वपूर्ण पत्र लिखने का वादा किया था; किन्तु अभीतक लिख नहीं पाया था। अभी चार दिन पहले मैं लिखने जा ही रहा था कि श्रीमती नायडूका पत्र आ गया, जिसमें उन्होंने सूचित किया था कि वे यहाँ आ रही हैं। इसलिए उनके आनेतक मैं फिर रुक गया । मैं यह कहना चाहता था कि कांग्रेस आपके नियन्त्रण में आ जाये, इसके लिए मैं आपका रास्ता सुगम बनाने, वास्तवमें उसमें आपको सहायता देनेके लिए तैयार हूँ । लेकिन मतदाताओं को अपने पक्ष में करनेका आज जो अर्थ लगाया जा रहा है, उस अर्थ में मैं उन्हें किसी पक्षमें करनेके

  1. १. इसके बाद गांधीजीने मलावार के बाढ़ पीड़ितोंकी सहायतार्थं धनकी अपील की।
  2. २. उन्नीसवीं सदीके प्रसिद्ध गुजराती कवि ।