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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रयत्न में शामिल नहीं होऊँगा । मैं कांग्रेससे बाहर रहकर काम करनेको तैयार हूँ; किन्तु उसके विरोध में काम करनेके लिए तैयार नहीं हूँ । वातावरण में शान्ति लाने, खद्दर तथा हिन्दू-मुस्लिम एकताको बढ़ावा देने और अस्पृश्यताको दूर करनेके अलावा और किसी बात में मेरी दिलचस्पी नहीं है । मैं जानता हूँ कि इस सबमें मुझे आपकी मदद मिलेगी । स्वाभाविक है कि उस काम के लिए मैं अपने अधीन कोई संगठन भी चाहूँगा, लेकिन ऐसी किसी इच्छासे नहीं कि मैं किसी दिन कांग्रेसपर कब्जा कर लूँ । आज जैसा वातावरण है, उसमें मैं नहीं चाहूँगा कि बहुमत प्राप्त करनेके लिए विवाद खड़ा हो और उसमें राष्ट्रका समय बरबाद हो ।

अगर आप पूरे कांग्रेस संगठनकी बागडोर हाथमें लेनेको तैयार न हों तो मैं उन प्रान्तोंकी कांग्रेसको हाथमें लेने में आपकी मदद करने के लिए बिलकुल तैयार हूँ, जहाँ उसके संचालन में आपको कोई कठिनाई दिखाई न देती हो ।

आपके कार्यक्रम में शामिल होने की बातको छोड़कर आप और जो कुछ चाहें, मैं करने को तैयार हूँ ।

फिर कांग्रेस अध्यक्षका सवाल भी एक बड़ा सवाल है । राजगोपालाचारी, गंगाधरराव और राजेन्द्र बाबूका आग्रह है कि यह पद म स्वीकार कर लूँ । लेकिन वल्लभभाई और शंकरलालको मेरा यह विचार ठीक जान पड़ता है कि मैं उसे स्वीकार न करूँ । जमनालाल तटस्थ हैं और शायद यही स्थिति श्रीमती नायडूकी भी है। हाँ, यह बताना भूल गया कि शौकत अलीका भी आग्रह है कि मैं यह पद स्वीकार कर लूँ। लेकिन मैं एक ही हालत में अपने निर्णयपर पुनर्विचार कर सकता हूँ -- यानी अगर आप चाहें कि मुझे यह पद स्वीकार कर लेना चाहिए तो आप कृपया श्री दास, केलकर तथा अन्य सज्जनोंसे सलाह-मशविरा करके सूचित करें कि जिन दोनों बातों के बारेमें मैंने आपसे पूछा है उनपर आपका क्या सुझाव है । यह पत्र मैंने श्रीमती नायडूको पढ़कर सुना दिया है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ५१७७) की फोटो-नकलसे ।
सौजन्य : कृष्णदास