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२९०. पत्र : हंसेश्वर रायको

साबरमती
९ अगस्त, १९२४

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला । यदि कोई पत्नी अपने पतिके विचारोंसे सहमत न होते हुए भी अन्य दृष्टियोंसे सर्वथा निर्दोष हो तो पाशविक वासना-रहित स्नेहके द्वारा उसके मनको जीता जा सकता है । इस प्रक्रिया के दौरान पतिको चाहिए कि पत्नीको अपने मनसे चलते रहने दे और स्वयं वही करता रहे जिसे वह सर्वोत्तम समझता हो । लेकिन पत्नी यह आशा भी न रखे कि पति उसकी खर्चीली रुचियोंका बोझा उठाये । जहाँतक भोजन और वस्त्रकी बात है, पत्नी के लिए उसका प्रबन्ध करना पतिका कर्त्तव्य है । पत्नीको पतिकी आयमें हिस्सा बाँटनेका अधिकार है, किन्तु उसे यह अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए कि पति कर्ज लेकर उसकी इच्छाएँ पूरी करे। मुझे विश्वास है कि जहाँ केवल विशुद्ध स्नेहका राज्य है, वहाँ अन्य सभी मतभेद दूर हो जाते हैं या यदि रहते भी हैं तो उनके बावजूद सम्बन्ध-निर्वाहके लिए कोई सम्मानजनक रास्ता निकल ही आता है ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

हंसेश्वर राय
७१. . .
कलकत्ता
[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से ।
सौजन्य : नारायण देसाई