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२९१. पत्र : तीरथराम जनेजाको

साबरमती
९ अगस्त, १९२४

प्रिय मित्र,

इस दुःख में आपके साथ मेरी पूरी सहानुभूति है । आत्महत्या पाप है और हरएक पाप वियोगकारी होता है । इसलिए आत्महत्या करनेसे तो आपके और आपकी पत्नी के बीच की दूरी बढ़ेगी ही । फिर मृत्युसे समस्या हल भी नहीं होगी; क्योंकि तब आप वहाँ चले जायेंगे जहाँ जाना आपके भाग्यमें लिखा है और वे वहाँ रहेंगी जहाँ रहना उनके भाग्य में लिखा है। लेकिन आप इस शरीरको छोड़नेतक खुदको सुधार सकते हैं। आप उनके शरीरको प्यार करते थे या उसमें प्रतिष्ठित आत्माको ? यदि आप शरीरको प्यार करते थे तब तो आपको चाहिए था कि उसपर मसाले चढ़ाकर उसे अपने कमरेमें बन्द करके रखते। यदि उनकी आत्माको प्यार करते थे तो वह तो अब भी आपके साथ है । उनमें जो कुछ अच्छा था, उसकी स्मृति ही क्या आपके लिए पर्याप्त नहीं है ? या आपका प्रेम स्वार्थपूर्ण था ? जिन्हें हम प्यार करते हैं उनकी मृत्युके बाद तो हमें ऐसा अनुभव होना चाहिए कि वे हमारे और भी निकट आ गये हैं ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्री तीरथराम जनेजा
कानपुर
[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
२४-३५